कुर्सी बचाने को इंदिरा ने थोपा था ‘आपातकाल’
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-इमरजेंसी की कहानी
बलिया। लोक बन्धु राजनरायन के चुनाव याचिका के निर्णय आने के पश्चात् श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सारी मान्यताओं को ताक पर रखकर अपनी कुर्सी बचाने की नियत से 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की। जन परिणाम स्वरूप विपक्ष के बड़े नेताओं से लेकर जनपद स्तर तक विपक्ष के कार्यकर्ताओं को जेल में बन्द कर दिया गया और आजादी के बाद भारतीय राजनीति के काला इतिहास इन्दिरा गांधी और कांग्रेसियों द्वारा लिख दिया गया। उक्त बातें लोकतंत्र रक्षक सेनानी संतोष शुक्ला ने कही। कहा कि केवल अपनी कुर्सी बचाने के लिए ऐसा दुष्कर्म भारतीय राजनीति की एक मात्र पहली घटना थी। इस घटना में विश्व स्तर पर भारतीय राजनीति की प्रतिष्ठा को तार-तार कर दिया। भारत की जनता से बहुत ही समझदारी से श्रीमती गांधी को 1977 के चुनाव में पराजित कर इसका बखूबी उत्तर दिया।श्री शुक्ल ने कहा कि आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की सारी संस्थाओं को मृतप्राय कर दिया गया। केवल एक संस्था एक ही व्यक्ति श्रीमती गांधी सर्वमान्य शक्ति रह गयी। इस घटना में यह साबित कर दिया गया कि भारत का संविधान लोकतंत्र की रक्षा में कितना कमजोर है। आज की पीढ़ि नौजवान जिसे आपातकाल के घटनाओं की न कल्पना है, न जानकारी है व उन दिनों की कठिनाईयों की कल्पना नहीं कर सकते हैं। आजादी की लड़ाई लड़ने वाले कांग्रेस नेहरू की वारिस श्रीमती गांधी इतिहास में अपने को एवं कांग्रेस को कभी भी निष्कलंकित नहीं कर पायेंगी। मांग की कि संविधान में इस तरह के संशोधन हो ताकि कोई भी व्यक्ति संस्था या सरकार इस तरह की घटना का पुनरावृत्ति न कर सके।
उन्होंने कहा कि आपातकाल की घोषणा के साथ ही पूरे देश सहित बलिया में इसके विरोधी चिंगारी उठी और लोकतंत्र के सेनानियों ने बलिया से इसकी बगावत शुरूआत की। आपातकाल की घोषणा के साथ ही जिले के तत्कालीन लोकदल नेताओं की एक बैठक एक होटल के छत पर हुई। निर्णय लिया गया कि आपातकाल के विरोध में शहर बन्द कराया जायेगा। कहा कि 26 जून को लोकदल जनसंघ के सदस्य छात्र युवा संघर्ष समिति के सदस्य सड़क पर उतर गये। कलेक्ट्रेट में पाण्डेय गोविन्द जी ने निन्दा का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से पास कर दिया।
आन्दोलन को दबाने के लिए पुलिस ने पहले ही दिवाकर शर्मा, बब्बन सिंह, सुशील पाण्डेय, गंगासागर को गिरफ्तार कर लिया। रात में ही पाण्डेय गोविन्द जी, कुलदीप नरायन सिंह, शम्भू नाथ चौधरी, मैनेजर सिंह, कैलाश सिंह इनकी गिरफ्तारी हुई, पुलिस का आतंक बढ़ा। चाय पान की दुकानों पर राजनैतिक बहस पर रोक लगा दी गयी। लोगों की गिरफ्तारी का क्रम जारी रहा। लोग जल्द ही रात में घर जाने लगे। 01 जुलाई को अंजनी पाण्डेय की देखरेख में बैठक हुयी। सरकार विरोधी कार्यवाही तेज हुयी। जिसके कारण 07 जुलाई को शुभ्रांशु शेखर पाण्डेय गिरफ्तार हुए। 29 जून को गोविन्द जी वकील के घर जाते हुए द्विजेन्द्र कुमार मिश्र की गिरफ्तारी हुई, 04 जुलाई को अंजनी पाण्डेय की वाराणसी पुलिस ने गिरफ्तार कर बलिया जेल भेज दिया।
15 अगस्त को आपातकाल खत्म होगा, काफी विलम्ब से अपने को गिरफ्तार करवाये लोग, तत्कालीन कोतवाल राजकुमार मिश्र से शम्भु चौधरी से कहासुनी हो गयी। यह देख लोकदल कार्यकर्ता द्विजेन्द्र कुमार मिश्र, निपेन्द्र नरायण मिश्र बागी आदि ने कोतवाल को दोड़ा लिया, परिणाम स्वरूप उस साथियों को जेल में प्राप्त उच्च श्रेणी की सुविधा प्रशासन द्वारा हटा लिया गया। जिसे शुभ्रांशु शेखर पाण्डेय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर पुनः प्राप्त किया। आपातकाल में तीन श्रेणी के लोग जेल में बन्द थे। एक वे जो आन्दोलन किये, दूसरे प्रतिबन्धित संस्थाओं के लोग दुश्मनीवश या आपराधिक कार्यो में लिप्त होने के कारण।
जनपद कारागार, बलिया में मुख्य रूप से ठाकुर जगरनाथ सिंह, मोहन सिंह, बलदाऊ, परशुराम सिंह यादव, शारदानन्द अंचल, राजधारी, पूर्व विधायक शम्भु नाथ चौधरी, मैनेजर सिंह, बब्बन सिंह, देवेन्द्र त्रिपाठी, शिवमंगल सिंह, भैया गौरी शंकर, रामगोविन्द चौधरी, जन संघ व आर0एस0एस0 के केशव देव उपाध्याय, जगरनाथ शुक्ल, श्यामजी चौबे, हरेराम चौधरी, गोपाल सिंह, डॉ0 देवेन्द्र आर्य, काशीनाथ तिवारी, सतीश चन्द्र राय, शिवभूषण तिवारी तथा सबसे कम उम्र के संतोष कुमार शुक्ल आदि प्रमुख रहे।
आज मनाया जायेगा काला दिवस
लोकतन्त्र सेनानी जे0पी0 आन्दोलन प्रवक्ता संतोष कुमार शुक्ल ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बताया कि 25 जून को शहीद पार्क स्थित बापू की प्रतिमा के समक्ष आपातकाल के विरोध स्वरूप काला दिवस मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम लोकतन्त्र सेनानी सह समस्त जन की सहभागिता आपेक्षित है।
By_Ajit Ojha
Tags: पत्रकार कोना
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