सफलता का सूत्र : जड़ता त्यागें, जीवन लक्ष्य की ओर बढ़ें




बलिया : जिह्वा के स्वाद, नेत्रों की सौंदर्य-लिप्सा, कानों की मधुर संगीत सुनने की इच्छा तथा कामवासना आदि विषयों में आसक्ति हो जाने के कारण विद्या-अविद्या की बात विलुप्त हो गई। जड़-चेतन में ऐसी गाँठ पड़ गई कि उनका पृथक अस्तित्व भी समझ में नहीं आता। "चेतना" ने अपने आप को "जड़" मान लिया और "जड़ता" के काम करने लगी। यद्यपि जड़त्व की, अपने आप को मात्र शरीर मानने की बात नितांत मिथ्या, भ्रम, अज्ञान है तो भी लोग उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं। युग-युगांतरों से अभ्यास में आने वाला स्वभाव-गुण एकाएक छूट भी नहीं सकता। जीव ने संसारी होने का अपना विश्वास इतना पुष्ट कर लिया है कि जड़-चेतनता के बीच जो ग्रंथि पड़ गई है, वह छूटती नहीं और जब तक यह भ्रम दूर नहीं होता, तब तक कष्ट भी दूर नहीं होते।
महापुरुषों, श्रुतियों, पुराणों ने तरह-तरह के उपाय और अनेक प्रकार के साधन बताए, पर जीव के हृदय में सांसारिक सुख, लोभ, मोह आदि का अंधकार इतना सघन होकर छा गया कि वह इनसे छूटने का प्रयत्न करने की अपेक्षा और भी उलझता गया। मुक्त होने के लिए उसने कुछ प्रयास भी न करना चाहा।
ईश्वर की कृपा या किन्हीं देव-पुरुषों के अनुग्रह से कदाचित इस प्रकार का विचार मन में आ जाए कि "आत्म-ज्ञान" प्राप्त करना चाहिए, अपना रहस्य जानना चाहिए, परमात्मा का दर्शन करना चाहिए, तो उसे अनेक जन्मों के शुभ संस्कारों का प्रतिफल या ईश्वर की कृपा दृष्टि ही समझनी चाहिए। उस पर यदि किसी के अंतःकरण में "श्रद्धा" जाग्रत हो जाए, तो उसे अपना बड़ा सौभाग्य मानना चाहिए।
"श्रद्धा" का उदय होना निश्चय ही अनेक जन्मों के पुण्यों का प्रतीक है, पर अकेली "श्रद्धा" ही "आत्म-कल्याण" नहीं कर देती, वह - हमें अपने जीवनलक्ष्य की ओर उन्मुख करने वाला प्रकाशमात्र है। उनको उस यात्रा पथ पर चलने की भी आवश्यकता है। शास्त्र इस क्रिया को "धर्माचरण" बताते हैं। अर्थात श्रद्धा उदय हो तो मनुष्य को - जप, तप, व्रत, यम, नियम आदि साधनों का आश्रय लेकर जीवन जीने और आत्म-शोधन की प्रक्रिया प्रारंभ कर देनी चाहिए। संसार में जितने भी शुभ कर्म हैं, वे सब "धर्म" का आचरण कहलाते हैं, इनसे "आत्मा" का बल बढ़ता है और उसमें सबलता आने लगती है।
जीवन की सर्वोपरि आवश्यकता "आत्मज्ञान" पृष्ठ ११३ *CODE AA 43
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
विजेन्द्र नाथ चौबे
गायत्री शक्तिपीठ
महावीर घाट गंगा जी मार्ग बलिया।

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