छलक न जाये दर्द कहीं...
On
इसीलिए हंसते रहते हो
गम को छिपाये अंदर में हो
बेगम से दिखते रहते हो।
अनुभव की अनमोल किताबें
पड़े-पड़े लिखते रहते हो।
सागर में मोती जैसे हो
बिना मोल बिकते रहते हो।
किनकी मुस्कानों की खातिर
पल-पल यूँ मिटते रहते हो।
छलक न जाये दर्द कहीं, क्या
इसीलिए हंसते रहते हो ?
चलते-चलते जब गिर जाते
फिर उठते, चलते रहते हो।
कांटों बीच घिरे हो फिर भी
फूलों सा खिलते रहते हो।
विंध्याचल सिंह
बुढ़ऊं, बलिया, उत्तर प्रदेश
Related Posts
Post Comments
Latest News
तीसरे चरण की वोटिंग से पहले सपा का बड़ा फैसला, अखिलेश ने श्यामदेव पाल को सौंपी बड़ी जिम्मेदारी
06 May 2024 14:02:51
UP News : लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के मतदान से पहले समाजवादी पार्टी ने बड़ा फैसला लिया है। पार्टी...
Comments