आस्था का पर्व गंगा दशहरा आज : गंगा की धार को अविरल बनाए
बलिया। यथार्थ की अनुगूंज कराता करोड़ों भारतीय श्रद्धालुओं के पावन विचारों को परिष्कृत करता गंगा दशहरा पर स्नान धार्मिक भावनाओं एवं संकल्पों को और भी प्रबल बनाता है। शिक्षक व साहित्यकार पंडित नवचंद्र तिवारी ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार श्री कपिल मुनि की कोप दृष्टि से भस्म हुए साठ हजार पूर्वजों की मुक्ति हेतु भागीरथ ने गंगा को धरा पर लाने की कठोर तपस्या की। गंगा सहमत तो हो गईं, परंतु अपनी प्रचंड वेग से। अतः ब्रह्मा के सुझाव पर भागीरथ ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया। तब महादेव ने अपनी जटाओं में गंगा को नियंत्रित कर आज ही के दिन अर्थात ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को धरा पर मां गंगा को अवतरित किया था।
एक अन्य जनश्रुति के अनुसार गंगा के कुपित वेग से बलिया में अवस्थित महर्षि जुन्हू का आश्रम बह गया था। अतः क्रोध वश महर्षि ने गंगा को ही निगल लिया था। तब देवताओं ने महर्षि से प्रार्थना की और गंगा मुक्त हुई। यह स्थान दक्षिण गंगा पार था जिसे महर्षि जुन्हू के नाम पर ही जवहीं दीयर नाम मिला। बताया कि बलिया में महर्षि जुन्हू के नाम पर ही गंगा को जान्हवी नाम मिला था। मां गंगा अनादि काल से ही जनमानस को मोक्ष दिलाती आई है। गंगा दशहरा के पावन पर्व पर लोग गंगा में दस डुबकी लगाकर विधि विधान से विभिन्न चीजों को दान देकर पुण्य अर्जित कर विघ्न - बाधाओं से दूर होते हैं, लेकिन आज आवश्यकता इस बात की है कि हम गंगा की धार को अविरल बनाए रखें। उसकी निर्मलता में हमारी दखलअंदाजी न हो। कल-कारखानों से निकले अपशिष्ट, गंदगी, अधजले शव, प्रदूषण फैलाने वाले कारक आदि को देश की इस पवित्र जीवन रेखा में प्रवाहित न होने दें। यह नैतिक भावना ही गंगा के प्रति हमारी सबसे बड़ी आस्था होगी।
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