साहित्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर थे आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी : डॉ. जनार्दन राय




बलिया : हिन्दी जगत के सशक्त हस्ताक्षर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा विज्ञान के अनुपम एवं अद्वितीय विचारक है। साहित्य से उनको निकाल दिया जाए तो हिन्दी अनाथ हो जाएगी। उक्त बातें वरिष्ठ साहित्य कार डॉ. जनार्दन राय ने सतनी सराय स्थित कात्यायन भवन पर हिन्दी हितकारिणी सभा के तत्वावधान में आयोजित उनकी जयंती के अवसर पर कही।
जिला कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अवध बिहारी चौबे ने कहा कि डा. द्विवेदी भाषा की नाव पर इतिहास को सजाने वाले ऐसे कद्दावर साहित्यकार रहे, जिसने न केवल हिन्दी को गति दी, बल्कि साहित्यिक कल्पनाओं को जमीनी अंदाज भी दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ जनार्दन राय एवं संचालन गंगा भक्त रमाशंकर तिवारी ने किया। इस अवसर पर प्रबोध कुमार पाण्डेय, मनोज पाण्डेय, वीरेंद्र कुमार, बैकुंठ नाथ मिश्र इत्यादि लोग उपस्थित रहे।
संक्षिप्त परिचय
भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रतीक पुरुष डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी, हिन्दी, संस्कृत, बांग्ला और अन्यान्य भारतीय भाषाओं के कालजयी रचनाकारों में पांक्तेय अप्रतिम साहित्यकार थे। उनका जन्म बलिया जनपद के ओझवलिया गांव में 19 अगस्त 1907 को हुआ था। पाण्डित्य की प्रकाण्डता और सर्जक की हार्दिकता के अद्भुत समन्वय से विनिर्मित द्विवेदी जी का विपुल साहित्य उनके विरल व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब है। द्विवेदी जी का मानना था कि शाश्वत मानवीय मूल्यों को दरकिनार कर सत-साहित्य की रचना असंभव है। रवीन्द्रनाथ टैगोर के सान्निध्य से द्विवेदी जी की परंपरा का एक नया बोध मिला, जिसके फलस्वरूप आधुनिक भाव बोध भी प्राप्त हुआ। वस्तुत: यह ऐसा सुभग समन्वय है, जिसमें परंपरा और प्रगति, प्राचीनता और नवीनता तथा लोक और शास्य का संतुलित ढंग समानांतर गति से चलते हैं।


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