आगि प्रानन में, तूं लगा के चल

आगि प्रानन में, तूं लगा के चल

आगि प्रानन में, तूं लगा के चल

आस के दिया हिया, जरा के चल
विघ्न रहिया के सबे, हरा के चल।

घाति से राह में, बइठल होइहें, 
कांट कुश से, कदम बचा के चल।

यह भी पढ़े एक ही दुपट्टे से लटकता मिला प्रेमी-प्रेमिका का शव

ऊ त चहिहें , तूं सांसति में रह, 
चल जब भी त तिलमिला के चल।

यह भी पढ़े बलिया को मिली निर्भय की चार बड़ी सौगात : डॉ. विनय सहस्त्र बुद्धे बोले- शिक्षा समाज के विकास की नींव

आस छोड़ केहू, फरिश्ता के, 
आगि प्रानन मे, तूं लगा के चल।

रोवला से ई दुख, ना कम होला, 
समय चोरा ल, मुस्किया के चल।

उनका दंशन के घाव, हरियर बा, 
कुछ देरी ओके, भुला के चल।

कहला से त, जगहंसाई होला, 
दाबि ल दिल में आ छिपा के चल।

सांसि अन्तिम कवन ह, के जानल, 
हर एक सांसि, खिलखिला के चल।

विन्ध्याचल सिंह
बुढ़ऊं, बलिया, उत्तर प्रदेश

Tags:

Post Comments

Comments