मेरे बेटे को मौत दीजिए साहब... पिता ने सुप्रीम कोर्ट में क्यों की ऐसी डिमांड

मेरे बेटे को मौत दीजिए साहब... पिता ने सुप्रीम कोर्ट में क्यों की ऐसी डिमांड

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक 31 साल के युवक की हालत पर गहरी चिंता जताई, जो 12 वर्षों से वेजिटेटिव स्टेट (vegetative state) में है। युवक एक इमारत से गिरने के बाद गंभीर रूप से घायल हुआ था, तब से लाइफ सेविंग इक्विपमेंट (life saving equipment) के सहारे बिस्तर पर है। सांस लेने और खाने के लिए वह ट्यूब्स और मशीनों पर निर्भर है। उसके बुजुर्ग माता-पिता ने बेटे को इस दर्द से राहत दिलाने के लिए कोर्ट से पैसिव यूथेनेसिया (इच्छामृत्यु) की अनुमति मांगी है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और केवी विश्वनाथन की पीठ युवक के पिता की ओर से इलाज रोककर यानि जीवन रक्षक सपोर्ट हटाकर प्राकृतिक रूप से मरने के लिए छोड़ देने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है।

एम्स के डॉक्टरों की सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड द्वारा पेश मेडिकल हिस्ट्री वाली रिपोर्ट पर विचार करने के बाद पीठ ने कहा कि ‘यह बहुत दुखद रिपोर्ट है। हम इस लड़के को इस हालत में नहीं रख सकते।’ हालांकि पीठ ने कहा कि इस मामले में कोई भी अंतिम आदेश पारित करने से पहले, हम युवक के माता-पिता से मिलना चाहेंगे। इसके साथ ही पीठ ने युवक के माता-पिता को 13 जनवरी 2026 को दोपहर 3 बजे मीटिंग तय की है। वर्ष 2013 में एक मकान के चौथी मंजिल से गिरने के बाद 31 साल के हरीश राणा पिछले करीब 12 साल से वेजिटेटिव स्टेट में है। यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें व्यक्ति जाग तो रहा होता है (आंखें खुली होती हैं), लेकिन उसमें जागरूकता या सचेत प्रतिक्रियाओं का अभाव होता है। यह कोमा से अगल होता है।

शीर्ष अदालत में युवक के पिता अशोक राणा की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई हो रही है, जिसमें उन्होंने अपने बेटे का लाइफ सपोर्ट हटाने के लिए न्यायिक दखल की मांग की है। ताकि उसे प्राकृतिक रूप से मरने के लिए छोड़ा जा सके। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 26 नवंबर को पहले नोएडा के जिला अस्पताल को मेडिकल बोर्ड बनाने और मरीज की हालत के बारे में रिपोर्ट देने को कहा था। नोएडा जिला अस्पताल की मेडिकल बोर्ड ने युवक की च करने के बाद पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उसके ठीक होने की संभावना बहुत कम है। 

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शीर्ष अदालत ने 11 दिसंबर को कहा था कि प्राइमरी मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, युवक की स्थिति बहुत खराब है। पीठ ने कहा था कि वह ‘वह सांस लेने के लिए ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब और खाने के लिए गैस्ट्रोस्टोमी के साथ बिस्तर पर पड़ा हुआ पाया गया।तस्वीरों से पता चलता है कि उसे बड़े-बड़े बेड सोर हो गए हैं। डॉक्टरों की टीम की राय है कि उसकी मौजूदा हालत से ठीक होने की संभावना बहुत कम है। इसके बाद पीठ ने इस मामले में एम्स को मेडिकल बोर्ड गठित करने और रिपोर्ट देने को कहा है। एम्स की रिपोर्ट मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे दुखद बताते हुए कहा कि वह युवक के माता-पिता से मिलना चाहेंगे।

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पीठ ने नोएडा के सेक्टर 39 स्थित जिला अस्पताल को मेडिकल बोड बनाने का निर्देश देते हुए कहा कि 31 साल का युवक 100 फीसदी दिव्यांगता यानी क्वाड्रिप्लेजिया से पीड़ित है और एक दशक से अधिक समय से वेजीटेटिव स्टेट में है। जस्टिस पारदीवाला ने कहा था कि ‘इस अर्जी में कही गई बातों और याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील द्वारा हमारे ध्यान में लाई गई बातों पर गौर करने से ऐसा लगता है कि ‘युवक’ की हालत बद से बदतर होती जा रही है। उनकी हालत बहुत खराब है। इसमें कोई शक नहीं है कि वह लगातार वेजिटेटिव स्टेट में हैं। उन्हें क्वाड्रिप्लेजिया की वजह से 100 फीसदी दिव्यांगता है।’

युवक के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर दूसरी बार बेटे को पैसिव वूथेनेशिया देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। पिछले साल 8 नवंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट के मद्देनजर युवक का इलाज रोककर मरने के लिए छोड़ने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। केंद्र सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट में कहा गया था कि मरीज को उत्तर प्रदेश सरकार की मदद से घर पर ही रखा जाएगा और डॉक्टर और एक फिजियोथेरेपिस्ट नियमित तौर पर करेंगे।

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