शिक्षक दिवस पर बलिया की नेहा ने गुस्ताखी की है, पर क्या...?
शिक्षक दिवस के पवित्र अवसर पर अपनी भावनाओं से पिरोये हुए कुछ शब्द, उस व्यक्तित्व के लिए जो हमारे माता-पिता के आलावा हमारी सफ़लाओं पर हृदय कण से प्रसन्न होता है। मेरी ये कविता मेरी माता जी, मेरे पिता जी एवं मेरी प्राथमिक शिक्षा से अब तक की शिक्षा के मार्ग में अपने ज्ञान से मुझे सींचकर मेरा मार्गदर्शन करने वाले गुरुजन के श्री चरणों को अर्पित...
गुस्ताखी की है
आपको लिखने की गुस्ताख़ी की है,
हालांकि पता है हर लाइन में कुछ न कुछ बेइमानी की है।
आपका व्यक्तिव पन्ने पर उतार दे ये किसी कलम की औकात नहीं,
ये पवित्र हृदय, निश्छल मुस्कान और ये उत्तम तेज जिसे दबा सकें सूर्य अब तो उसमें भी ये बात नहीं।
ईश्वर माफ़ करे मुझे,
अब तो आपको मंदिर में बिठा दें तो भी कोइ विषाद नहीं।
आपको लिखने की गुस्ताख़ी की है,
हालांकि पता है हर लाइन में कुछ न कुछ बेइमानी की है।
ये बताना आसान नहीं कि क्या हैं आप,
आँधी वाली रात में हम जैसों के लिए लगातार जलता हुआ दीप हैं आप।
लंगड़े को भी मंजिल तक पहुंचा दे वो पथ हैं आप,
और क्या उपमाएं दूं जो कण से लेकर ये ब्रह्माण्ड तक हमारी मुट्ठी में भर दे वो हैं आप।
आपको लिखने की गुस्ताख़ी की है,
हालांकि पता है हर लाइन में कुछ न कुछ बेइमानी की है।
हमें जब जिसकी जरुरत हो वो किरदार पकड़ लेते हैं,
शिक्षा के इस बाजारीकरण में न जाने कितनों को यूं ज्ञानदान दे देते हैं।
सम्पूर्णता क्या होती है, इसका उत्तर बस सादगी से मुस्कुरा के दे देते हैं,
ये भाग्य नहीं सौभाग्य है हमारा कि आपका सानिध्य प्राप्त कर लेते हैं l
नेहा यादव
पुत्र उषा मनोज यादव
करम्मर, बेरुआरबारी, बलिया (उत्तर प्रदेश)
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