बेटे की लंबी आयु के लिए मां रखेंगी निर्जला जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें नहाय खाय और पारण की सही डेट




बलिया : हिंदू धर्म में साल भर व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। सभी व्रत-त्योहारों को मनाने की परंपरा अलग-अलग होती है। साथ ही सभी त्योहारों के धार्मिक महत्व व मान्यता भी अलग-अलग हैं। इनमें से एक जितिया पर्व भी है, जिसे जीवित्पुत्रिका भी कहा जाता है। एक मां द्वारा अपने पुत्र की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन का वरदान प्राप्त करने के लिए आश्विन महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला और निराहार रहकर जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। मुख्य रूप से यह व्रत सुहागिन माताएं करती हैं और ऐसी महिलायें, जिन्हे संतान नहीं है। वो संतान प्राप्ति की इच्छा से जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं।
व्रत के दिन भगवान जिउतवाहन की पूजा की जाती है। भगवान जिउतवाहन के साथ-साथ देवी और भगवान श्री कृष्ण की आराधना की जाती है। जीवित्पुत्रिका व्रत का पर्व कुल तीन दिनों तक चलता है। इसके अपने-अपने तीनो ख़ास दिन होते हैं। पहला दिन आश्विन महीने की सप्तमी को मनाया जाता है, जिसे नहाई-खायी के नाम से जाना जाता है। नहाई-खायी के दिन महिलायें सुबह-सुबह ही स्नान करके सात्विक भोजन करती हैं और सूरज डूबने के साथ ही व्रत की शुरुआत हो जाती है।
अगले दिन मुख्य जीवित्पुत्रिका व्रत का दिन होता है और माताएं इस दिन भोजन पानी के बिना कठिन उपवास रखती हैं। शाम के समय में किसी धार्मिक स्थान या नदी-तालाब के घाट पर सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना का कार्य करती हैं। रात को बने पकवान में से पितरों, चील, सियार, गाय और कुत्ता का अंश निकाला जाता है। व्रत के अगले दिन सुबह स्नान करने के बाद पूजा आदि करके नोनी का साग, रागी की रोटी और तोरी की सब्जी खाकर व्रत खोला जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत 2024
-मंगलवार (24 सितंबर 2024) को नहाय-खाय के साथ जितिया व्रत प्रारंभ होगा।
-बुधवार (25 सितंबर 2024) को निर्जला व्रत (दिन-रात) होगा।
-गुरुवार (26 सितंबर 2024) को पारण के साथ व्रत का समापन होगा।
आचार्य
डॉ. अखिलेश कुमार उपाध्याय, थम्हनपुरा बलिया

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