चला तो था मुझे आबाद करने, मुझे बरबाद करके जा रहा है...
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मुसाफ़िर था... ठहरके जा रहा है,
नशा सर से उतरके जा रहा है।
मिरा हमदर्द ही कांधों पे मेरे,
दु:खों का बोझ धरके जा रहा है।
नशा सर से उतरके जा रहा है।
मिरा हमदर्द ही कांधों पे मेरे,
दु:खों का बोझ धरके जा रहा है।
निराला था हमारा मुक्तिदाता,
हमारे पर कतरके जा रहा है।
कि जीते-जी न पहुंचा जो कहीं भी,
सुना है स्वर्ग मरके जा रहा है।
चला तो था मुझे आबाद करने,
मुझे बरबाद करके जा रहा है।
ज़रूरतमंद तो सारे यहीं हैं,
कहां ये माल भरके जा रहा है।
पतंगा ज्यूं किसी दीये से मिलने,
'शशी' यूं बन-संवरके जा रहा है।
Copyright- शशि प्रेमदेव
Tags: Ballia News


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