144वें स्थापना दिवस पर अगराया बलिया : जेकर लंदन तकले गूंज गइल आवाज़ ए भैय्या, बागी...




बलिया। भगवान शिव की साधना स्थली,कामदहन भूमि, महर्षि भृगु, गर्ग, पराशर, दुर्वासा, बाल्मिकी की तपोभूमि, महाभारत महाकाव्य के रचयिता वेदव्यास, ऋषि परशुराम, कुश-लव की जन्मभूमि और तथागत गौतम बुद्ध की दीक्षा-परीक्षा के साक्षी रहे बलिया जिले ने ऐतिहासिक शहीद पार्क चौक में अपना 144वां स्थापना दिवस मनाया।
इतिहासकार डाॅ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने कहा कि 1857 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी सरकार की पैदल सेना के सैनिक मंगल पाण्डे के विद्रोह, चौरा गाँव में ब्रिटिश खजाने की लूट, गोविन्द मल्लाह की शहादत और लिलकर के बाबू गरीब नारायण राय की विद्रोही सेना के द्वारा बलिया, आजमगढ, देवरिया, गोरखपुर और चम्पारण से अंग्रेजों को खदेड़ने के बाद 1858 में वीरवर कुंवर सिंह के विजय अभियान ने ब्रिटिश सरकार को बलिया प्रशासनिक ईकाई बनाने के लिये विवश कर दिया। एक नवम्बर 1879 को गाजीपुर, आजमगढ और बिहार राज्य के शाहाबाद जिले के बिहिया परगना के कुछ गाँवों को लेकर इस बगावती भू-भाग को बलिया नाम से जिला बना दिया गया। इस नवसृजित जिले के पहले कलेक्टर के रुप में डी.टी. राबर्ट को तैनात किया गया।
डाॅ. कौशिकेय ने बताया कि इसके बाद भी इस जिले की जनता का बगावती तेवर कम नहीं हुआ और एकबार फिर 1942 में जिले की जनता ने ब्रिटिश साम्राज्य से सत्ता छीनकर स्वराज की सरकार बना लिया था। किन्तु तत्कालीन कलेक्टर जगदीश्वर निगम और एसपी रियाजुद्दीन खां की कूटनीतिक चाल के कारण यहां स्वराज सरकार का शासन लम्बें समय तक नहीं चल सका और चौदह दिन में ही अंग्रेजी फौज ने बलिया पर पुनः कब्जा कर लिया था।
बलिया का यह तेवर यहां के साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, पंंडित परशुराम चतुर्वेदी, डाॅ. अमरकांत और डाॅ. केदारनाथ सिंह की लेखनी और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चन्द्रशेखर व जनेश्वर मिश्र की राजनीति में भी परिलक्षित होती है। समारोह में जागरूक संस्थान के कलाकार पंकज कुमार, छोटेलाल प्रजापति, विजय प्रकाश पाण्डेय, आशुतोष सिंह, सलोनी कुशवाहा, माया और अभय सिंह कुशवाहा, मृत्युंजय सिंह, सुमित कुमार ने अपनी प्रस्तुति दी। जिला सैनिक कल्याण पुनर्वास अधिकारी कमांडर रविन्द्र सिंह तेवतिया, भानु प्रकाश सिंह बब्लू, अभिषेक सिंह, प्रदीप सिंह, अटल बिहारी राय, इं. बच्चालाल मौर्य, अरुण कुमार, सतीश उपाध्याय, गजेंद्र प्रताप सिंह, शंकर रावत, डाॅ. फतेहचन्द बेचैन, प्रदीप रस्तोगी, संजीव कुमार आदि ने विचार व्यक्त किया।

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