Ballia डायट पर एकदिवसीय सेमिनार में भाषाई ज्ञान पर मंथन, छनकर सामने आई ये बात



Ballia News : जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान पकवाइनार बलिया पर आयोजित एकदिवसीय सेमिनार बहुभाषावाद का उद्घाटन करते हुए संस्थान के प्राचार्य (उप शिक्षा निदेशक) शिवम पांडे ने कहा कि भाषा और संस्कृति आपस में संबंधित होती है। भाषाई समृद्धि हमारी धरोहर है, जो सभी प्राणियों में मनुष्य को अलग बनाती है।
एकदिवसीय सेमिनार के मुख्य अतिथि श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर जैनेंद्र पांडे ने भाषाई विविधता एवं उसका समाज पर प्रभाव विषय पर बोलते हुए कहा कि यदि भाषाई विविधता स्वाभाविक है तो इसकी परिणीति निश्चित रूप से सुखद है। मानव के विकास का इतिहास एवं भाषा का इतिहास हमेशा से साथ चलता रहा है। मनुष्य की अप्रतिम खोज के रूप में भाषा को देखा जाता है। वैज्ञानिकों की सोच है कि मनुष्य के अलावा कुछ जानवरों तथा जीवों को भी सीमित भाषा निश्चित रूप से आती है।
यह अलग बात है कि अभी तक के विकास में हम उनकी भाषा को समझने में बहुत हद तक सफल नहीं हो पाए हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य भाषा से वर्तमान में अस्तित्व के साथ भूत तथा भविष्य की भी परिकल्पनाएं देखा करता है। कभी भी भाषा में कमजोर व्यक्ति किसी भाषाई शक्तिशाली व्यक्ति को अंतः मन से स्वीकार नहीं कर सकता, इसलिए भाषा का सवाल भावनाओं के सवाल से भी जुड़ा होता है। भाषा कभी मरती नहीं है, उनको मारा जाता है। इसलिए हमें आज के युग में भिखारी ठाकुर व विदेशिया जैसे पात्रों को धरोहर के रूप में स्वीकार करना होगा।
सेमिनार के नोडल डायट प्रवक्ता ने मुख्य अतिथि के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि मुस्कान आपकी हमारे लिए वरदान है। सेमिनार कार्यक्रम के मंच पर बोलते हुए डायट प्रवक्ता डा जितेंद्र गुप्ता ने कहा कि भाषा का प्रयोग अंतरात्मा की आवाज होती है, लेकिन यदि भाषा को रोजगार परक बना दिया जाए तो उसके विकास में चार चांद लग सकता है। सेमिनार कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित जननायक चंद्र विश्वविद्यालय के हिंदी भाषा के प्रोफेसर अभिषेक मिश्रा ने अपने उद्बोधन में बताया कि एक से अधिक भाषाओं को जानने वाला द्विभाषिक कहलाता है। दो या दो से अधिक भाषाओं को जानने वाला बहुभाषिक कहलाता है। उन्होंने प्लेटो अरस्तु तथा अन्य विद्वानों की चर्चा करते हुए कहा कि भाषा को अनुकरण से ही सीखा जा सकता है।
भारतीय संस्कृति को अगर कोई उज्ज्वल बना पाया है तो निश्चित रूप से उसमें बहु भाषा का योगदान है। हिंसक जीव जंतुओं से मनुष्य यदि बहुत बड़ा होता है तो उसके पीछे उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा ही होती है। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान पर मनोविज्ञान विषय के प्रवक्ता देवेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि मनोविज्ञान चेहरे के भाव को परिलक्षित करता है। उन्होंने बताया कि विद्या शिक्षा का वाहक है, जो एक साधन है। मनुष्य का सर्वाधिक विकास अपने परिवेश में प्रयोग की जाने वाली भाषा से ही होता है। कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित नगर शिक्षा क्षेत्र के पूर्व एकेडमिक रिसोर्स पर्सन डॉक्टर शशी भूषण मिश्र ने अपने उद्बोधन में बताया कि हमारे परिवेश में विद्यमान भाषा से हम अपने आप को प्रभावित होने से नहीं रोक सकते हैं।
कहा कि भाषा का विकास तथा मानव जाति का विकास हमेशा से साथ-साथ चलता रहा है। जिस समाज का जितना विकास होता है, उसमें सर्वाधिक योगदान भाषा का ही होता है। कार्यक्रम के नोडल जानू राम का सहयोग प्रदान करने के लिए डायट प्रवक्ता मृत्युंजय सिंह, राम प्रकाश सिंह, किरण सिंह, शाइस्ता अंजुम, राम यश योगी, डा जितेंद्र गुप्ता, डॉक्टर रविरंजन खरे, डॉक्टर अशफाक तथा अविनाश सिंह ने अपना सहयोग प्रदान किया। अतिथियों का स्वागत राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित शिक्षिका डॉ निर्मला गुप्ता तथा कुशल संचालक लक्ष्मी यादव द्वारा पुष्प गुच्छ देकर किया गया।
इससे पहले सेमिनार का उद्घाटन मां सरस्वती के चित्र पर पूजन अर्चन के साथ किया गया। अतिथियों का स्वागत वंदन डीएलएड की छात्रा शिखा चतुर्वेदी तथा अंकित राय द्वारा सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत से किया गया। इस कार्यक्रम में अकादमिक रिसोर्स पर्सन लालजी यादव, अखिलेश सिंह, मुकेश गुप्ता, विनय कुमार वीणा, इंद्रजीत यादव, राजीव राय, नागेंद्र पांडेय, सुशील कुमार, पवन शर्मा तथा विजय राय ने सहभागिता की।

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