बलिया में जीयर स्वामी का चातुर्मास : अपने मित्र से न छुपानी चाहिए कोई बात
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दुबहर, बलिया। जिस रस को कभी भी किसी समय पिया जा सकता है, उसी रस का नाम भागवत है। भागवत सभी वेद, उपनिषद, इतिहास, पुराण एवं भगवान संबंधी सभी धार्मिक ग्रंथों का तत्व है। इसको सुनने का अधिकार सभी वर्ण के लोगों को है। उक्त बातें गुरुवार की देर शाम गंगा नदी के पावन तट पर स्थित जनेश्वर मिश्र सेतु एप्रोच मार्ग के किनारे चातुर्मास व्रत कर रहे महान मनीषी संत श्री त्रिदंडी स्वामी जी के शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी ने कहीं।
कहा कि नैमिषारण्य की धरती पर सूत जी महाराज से कथा सुनते हुए शौनक ऋषि ने पूछा कि धरती से भगवान के अपने लोक में चले जाने के बाद धर्म कहां रहता है। इस पर सूत जी ने कहा कि भगवान के अवतार के समाप्त होने के बाद धर्म श्रीमद् भागवत महापुराण, बद्रिका आश्रम, भगवान के जन्म स्थान तथा भगवान के भक्तों के पास ही स्थायी निवास करता है। कहा कि धरती माता जनसंख्या के भार से विचलित नहीं होती, बल्कि वह धरा पर हो रहे अत्याचार, पापाचार और दुराचार से परेशान होती हैं। इसके कारण भूकंप एवं प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ता है।
कहा कि जब भी व्यक्ति सो कर उठे तो धरती पर पैर रखने से पहले धरती माता को प्रणाम करते हुए समुद्र वसने लक्ष्मी पर्वत स्तनमंडले के मंत्र का जाप करें। उन्होंने बताया कि मानव जीवन में व्यक्ति को अपने मित्र से कभी बड़ा नहीं बनना चाहिए। मित्र से कोई बात नहीं छुपानी चाहिए, लेकिन आज उसका उल्टा हो रहा है। लोग मित्र बनकर ही एक दूसरे को धोखा देने में लगे हैं और उसी से बड़ा बन रहे हैं। कहा कि भगवान का अवतार धरती पर भक्तों को कृतार्थ करने के लिए होता है। भक्तों की मनोकामना पूर्ति तथा उन्हें दर्शन देने के लिए ही धरती पर भगवान का अवतार होता है।
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