आपके रोम-रोम को उत्साहित कर देगी बलिया के शिक्षक की गजल, 'टूट कर चाहती थी मुझे वो...'
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बलिया। डॉ. शशि प्रेमदेव हमारे जनपद के एक लोकप्रिय कवि हैं। इनकी रचनाओं की मौलिकता, प्रयोगधर्मिता तथा दार्शनिकता बरबस ही पाठकों एवं श्रोताओं को सम्मोहित कर लेती है। आज, जब 'कोविड-19' के अदृश्य साये हम सबकी ज़िंदगी में खौफ़, अवसाद व ना-उम्मीदी का ज़हर भरने पर पूरे ज़ोर-शोर से तुले हुए हैं। प्रेमदेव की प्रस्तुत ग़ज़ल पाठकों को निश्चित रुप से एक नई ऊर्जा, उत्साह एवं साहस से लबरेज़ कर देगी।
एक ग़ज़ल : ज़िन्दगी के नाम
जब कभी हमने दिल से चखी ज़िन्दगी
गुड़ की मीठी डली-सी लगी ज़िन्दगी
मुफ़्त में हो भले ही मिली ज़िन्दगी
हर बड़ी चीज़ से है बड़ी ज़िन्दगी
भर गया जब शहद की मिठासों से जी
याद आयी हरी मिर्च-सी ज़िन्दगी
जाल इस आस में हम रहे फेंकते
अब फंसी अब फंसी अब फंसी ज़िन्दगी
पाण्डवों की भले ही समर्थक थी वो
कौरवों की तरफ से लड़ी ज़िन्दगी
हो भिखारी की या हो शहनशाह की
हो किसी की भी, है क़ीमती ज़िन्दगी
टूट कर चाहती थी मुझे वो 'शशी'
कह न पायी मगर ये कभी ज़िन्दगी
Tags: Ballia News
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