मर्यादा की 'लक्ष्मण रेखा' सबके लिए हितकारी, जानिएं क्यों और कैसे




बलिया। हमारी संस्कृति में नारी आदिकाल से पूजित है। उन्हें लक्ष्मीस्वरूपा मान कर यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: से उजागर भी किया गया हैं। साथ ही उनके लिए मर्यादा की लक्ष्मणरेखा को भी रेखांकित किया गया है। पर सवाल यह उठता है कि मर्यादा की इस लक्ष्मणरेखा का औचित्य क्या है? क्या सभी मर्यादाए सिर्फ़ औरतों के लिए है ? या फिर कुछ पुरूषों के लिए भी होनी चाहिए? इस लक्ष्मणरेखा के औचित्य का विश्लेषण आदिकाल से जोड़ते हुए बलिया के जनाड़ी गांव की डॉक्टर मिथिलेश राय ने बड़ी सलीके से किया है। साहित्य व धार्मिक क्षेत्र में रची बसी डॉक्टर मिथिलेश राय के शब्दों में कहें तो मर्यादाए नारी और पुरुष दोनों के लिए निहित होनी चाहिए। या यूं कहें तो दोनों को अपने-अपने हिस्से की मर्यादा का पालन भी समुचित तरीके से करना चाहिए।
डॉक्टर मिथिलेश राय की फेसबुक पोस्ट
बहुत सारी मॉडर्न बेटियां और बहने लक्ष्मण रेखा को पुरुषों द्वारा बंधन रेखा मानकर उलंघन करती हैं, तो वहीं पुरुष भी किसी-किसी मामले में इसे अपना अधिकार मानते हैं। खैर कौन क्या मानता है, इससे हटकर हमें यह जानना है कि वास्तव में यह क्या है और क्यों जरूरी है?
'लक्ष्मण रेखा' हमारे समाज, परिवार और स्वयं के द्वारा स्वयं के लिए खींची गयी सुरक्षित रेखा है, जिसे पार करने पर खतरा उत्पन्न हो जाता है। यह सिर्फ स्त्रियों के लिए नहीं है। बेटे और पुरुषों के लिए भी वह सीमा है, जिसे लांघना अनुचित और संकट युक्त है।
यह रेखा जाति-धर्म विशेष नहीं है, सबके लिए सामान्य और हितकारी है। हमारे घर की तो चीटियां भी बहुत चालाक और समझदार हैं। चाक से खींची लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करती। बस हम मनुष्य ही नहीं समझ पाते।जिसने भी इस रेखा को पार करने की भूल किया, वह फंसता गया।
पहला उदाहरण तो माता जानकी हैं ही। द्रौपदी भी तो वाणी की मर्यादा भूल कर अपने ससुर को अंधा बोल गई।
इस तरह के अनेकों उदारहरण हैं। जाने-अनजाने सीमा रेखा के उलंघन का दुष्परिणाम हम लोग भी भुगतते ही हैं, फिर भी समझ नहीं पाते। जाने कब हमारे बच्चे-बच्चियां और हम पुनः जीवन दर्शन रामायण की बातों का विश्वास करेंगे।
जय सियाराम

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