बलिया : Lockdown ने बढ़ाई दूरी, जिगर के टुकड़ों को गले नहीं लगा सकें माता-पिता ; वृद्ध बाबा ने दी मुखाग्नि
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मझौवां, बलिया। इसे विधि का विधान कहें या पूर्वजन्म के कर्मों की सजा या फिर बेबसी समझ से परे है। लेकिन मजबूरी व लाचारी की मार कितनी भयावह होती है, इसका नजारा बुधवार को हल्दी थाना क्षेत्र के मझौवां गांव में देखने को मिला। दर्द व पीड़ा का भाव यहां के लोगों के चेहरों पर साफ दिख रहा था। एक साथ दो चचेरे मासूम भाइयो की मौत ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया है।
वहीं उनके परिजन खुद को कोश रहे हैं कि परिवार की पेट की आग बुझाने व गरीबी मिटाने की भूख में यदि इनके पलकों को परदेश नहीं भेजा होता तो शायद यह दिन नहीं देखना पड़ता। एक साथ दो परिवारों की हंसती-खेलती दुनियां यूं वीरान भी नहीं होती। कुछ ऐसी बातों को दिल से लगाए परिजनों की चीत्कार इलाके की नीरवता को तोड़ रही है। कोरोना की वजह से हालात ऐसे हैं कि माता-पिता भी अपने कलेजे के टुकड़ों का अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाये और कांपती हाथों से 80 वर्षीय बाबा ने दोनों बच्चों को मुखाग्नि दी।
बुधवार को गंगा नदी में नहाते समय डूबने से मझौवां गांव निवासी नीरज पुत्र लल्लन गोंड व आशीष पुत्र ददन गोंड की मौत हो गयी। दोनों चचेरे भाई थे। अफसोस, आशीष के पिता ददन गोंड़ व मां रिंकी देवी गुजरात में है और लॉकडाउन की वजह से वे अपने जिगर के टुकड़े का अंतिम दीदार भी नहीं कर सकें। आशीष अपनी तीन बहनों में इकलौता भाई था। वही, नीरज के पिता लल्लन गोंड राजस्थान के इमराना में फंसे है। घर पर नीरज की रेनू देवी है। ऐसे में आशीष के माता-पिता व नीरज के पिता से दूरभाष पर बात करने के बाद दोनों चचेरे भाइयों का अंतिम संस्कार गंगा नदी के पचरुखिया घाट पर किया गया, जहां मुखाग्नि बूढ़े बाबा श्रीराम गोंड ने दी। यह दृश्य जो भी देखा उसका गला रूंध गया और आंखें बरस पड़ी। दो पोतो को खो चुके वृद्ध श्रीराम गोंड की आंखें पथराई हुई थी।
हरेराम यादव
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