
बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या है, बेवजह...
By Bhola Prasad
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बलिया। कोरोना संकट के कारण लॉक डाउन में घरों में कैद लोगों को सोशल मीडिया कभी डरा रही है तो राहत भी दे रही है। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर बहुत से रचनाकार कोरोना संकट में संबल दे रहे हैं तो कुछ हंसी-ठिठोली वाले टिक-टॉक के जरिए लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं।
ऐसे ही एक अनाम रचनाकार की यह पंक्ति सोशल मीडिया पर खूब पसंद की जा रही है-यूं पुरखों की जमीन बेचकर न जाया करो, कब छोड़ना पड़े शहर इसलिए गांव में भी घर बनाया करो। सोशल मीडिया पर कोरोना संकट में दुनिया की लाचारी पर लिखीं रचनाएं खूब वायरल हो रही हैं। किसी रचनाकार ने लिखा है-‘सारे मुल्कों को नाज था अपने-अपने परमाणु पर/अब कायनात बेबस हो गई छोटे से कीटाणु पर।
इसी तरह किसी ने लिखा-‘कुदरत का कहर भी जरूरी था साहब/हर कोई खुद को खुदा समझ रहा था। सोशल मीडिया पर ही यह रचना भी खासी पसंद की गई-‘ना इलाज है ना दवाई है, ए इश्क तेरे टक्कर की बला आई है। आमतौर पर अफवाहें फैलाने के लिए कोसी जाने वाली सोशल मीडिया ने कोरोना संकट में अपनी रचनात्मकता का भी परिचय दिया। अब इसी रचना को देखिए-‘बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या है, मौत से आंख मिलाने की जरूरत क्या है/सबको मालूम है बाहर की हवा कातिल है, यूं ही कालित से उलझने की जरूरत क्या है।
लॉक डाउन में घरों में कैद होने की बेबसी पर सोशल मीडिया पर वायरल यह रचना भी पसंद की जा रही है-‘जरा सी कैद से घुटन तुम्हें होने लगी / तुम्हें तो पंक्षी की कैद सदा भली लगी..। इसी तरह किसी ने शायराना अंदाज में यह टिप्पणी की-‘इक मुद्दत से आरजू थी फुरसत की....मिली तो इस शर्त पे कि किसी से ना मिलो। फुर्सत के भारी पड़ रहे पलों पर और भी रचनाकारों की नजर पड़ी है-‘कल तक जो कहते थे मरने की फुर्सत नहीं... आज वो बैठकर सोचते हैं जिएं कैसे....।'
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