राष्ट्रहित में चट्टान की तरह खड़ा रहते थे चंद्रशेखर
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मंगल पांडेय, चित्तू पांडेय, जयप्रकाश नारायण के बाद पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी के बदौलत उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद का नाम पूरे देश में आदर के साथ लिया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी की 93वीं जयंती अपने-अपने घरों में हम कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते मनाये।
चंद्रशेखर जी का जन्म 17 अप्रैल 1927 को बलिया जनपद के इब्राहिमपट्टी गांव में एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। अपनी मेधा शक्ति के बल पर भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में क्रांतिकारी तेवर व निष्पक्ष होकर अपना विचार रखने के कारण युवा तुर्क के नाम से विख्यात हुए थे। 1975 में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की तानाशाही रवैया के चलते उनकी सत्ता को लात मारकर चंद्रशेखर जी लोकतंत्र की रक्षा हेतु जयप्रकाश नारायण के पद चिन्हों पर चल पड़े। चंद्रशेखर जी की बागी तेवर से सत्ता की लोलुपता त्यागने के लिए प्रेरणा लेने की जरूरत है, ताकि लोकतंत्र की रक्षा होती रहे। किसी की सत्ता से टकराना अक्सर फिल्मों में हम देखते हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में चंद्रशेखर जी जैसे व्यक्तित्व के लोगों के जीवन से ही देखने को मिलती है।
चंद्रशेखर जी की पहचान धारा के विपरीत चलने व स्पष्ट वक्तव्य के लिए के कारण है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल का विरोध करने के कारण चंद्रशेखर जी पर देशद्रोह का मुकदमा कायम कर निशा में बंद कर दिया गया। मानसिक यातनाएं दी गयी। इसके बावजूद राष्ट्र हित के लिए वह चट्टान की तरह खड़ा रहते थे। सच बोलना उनकी आदत में शुमार था। जब वह सदन में खड़े होते थे तो पक्ष या विपक्ष शांति भाव से उनकी आवाज को सुनता था।
सामान्य किसान परिवार से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना उनके संघर्षों का परिणाम है। आज चंद्रशेखर जी की अनुपस्थिति देश को अखरती हो या नहीं, लेकिन बलिया को जरूर अखरती है, क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचाने के लिए बलिया ने 8 बार सांसद बनाया। वे कहते थे कि विचारों में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन देश व दुनिया के सामने हमें अपनी एकजुटता कायम रखनी चाहिए। आज के परिवेश में चंद्रशेखर जी का विचार प्रासंगिक है।
वीरेन्द्र सिंह, मनियर, बलिया
Tags: अपनी बात

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