बलिया के आशीष ने 'पान सिंह तोमर' को यूं किया आखिरी सलाम
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बहुत याद आओगे इरफ़ान !
हम ना हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
भूलोगे तुम भूलेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा
ऐसे तो ना जाना था इरफ़ान। अभी तो कितना कुछ सीखना था हमें आपसे। आप सिर्फ एक अभिनेता नहीं बल्कि अभिनय के जीवन्त स्कूल थे। अभिनय के दौरान किसी अभिनेता का पूरा शरीर बोलता है। यह हमने पढ़ा था कहीं, लेकिन जब आपको अभिनय करते हुए देखा इस बात की समझ आई कि वास्तव में अभिनेता का पूरा शरीर बोलता है। संवाद अदायगी के आपके अंदाज और आपकी आंखों की भाषा की कायल तो पूरी दुनिया हो चुकी है। हम तो इन्तजार कर रहे थे कि कैंसर को मात देकर अभिनय की जब दूसरी पारी शुरू करोगे तो आपको देखकर हम कुछ और समृद्ध होंगे। दिल बैठा जा रहा है। अभी मन कह रहा है कि काश, यह खबर बाकी खबरों की तरह फेक हो जाए। हम दुखी हैं। मर्माहत हैं। नि:शब्द हैं। आप जैसे महान कलाकार इस धरती पर कभी-कभी पैदा होते हैं। आपके जाने से जो खालीपन हुआ है, शायद ही कभी भर पाए।
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आपका जाना अभिनय के एक युग का समाप्त हो जाना है। इस दुनिया में जो आया है, उसे एक दिन जाना ही है, लेकिन आपका यूं जाना दिल दिमाग को झंकझोर गया। केदारनाथ सिंह के कविता की एक लाइन है 'जाना हिन्दी की सबसे खौफनाक क्रिया है।' आज इस बात को हमने महसूस किया है। इरफान एक ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने अपने जीवंत अभिनय से अभिनय की एक नई परिभाषा गढ़ी। फिल्म दुनिया में जाने से पहले अपने 1984 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय में स्नातक किया। उसके बाद फिल्मों की तरफ रुख किया तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
एक से बढ़कर एक मिसाल कायम किया आपने। बालीवुड से लेकर हालीवुड तक अपने को स्थापित करने वाले इरफान को 'पान सिंह तोमर' फिल्म के लिए 2012 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड मिला तो 2011 में ही भारत सरकार ने आप को पद्मश्री से सम्मानित किया। आज आप हमारे बीच नहीं है लेकिन आप जायेंगे कहा। आप युगों युगों तक हमारे दिलों दिमाग पर छाये रहेंगे। हमारा आखिरी सलाम कबूल करो दोस्त।
आशीष त्रिवेदी
वरिष्ठ रंगकर्मी, बलिया
Tags: बलिया
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