निगहबान आंखों की, वो बात पुरानी थी...
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वो बात पुरानी थी
लोग मिलते हैं आजकल,
एक दूजे से कभी,
पर आत्मीयता की,
वो बात पुरानी थी।
मिलते भी हैं जो,
सच्चे मन से कहीं,
पर निश्चल, निर्मल भाव की,
वो बात पुरानी थी।
कहीं बिगड़ेंगे कहीं,
तो बनेंगे भी रिश्ते,
रिश्तो में पक्की डोर की,
वो बात पुरानी थी।
रिस जाते हैं कुछ रिश्ते,
पल भर में ऐसे,
जज्बात से भरे रिश्तों की,
वो बात पुरानी थी।
स्वभाव में सरलता की
न बात कर, ऐ सागर !
सरलता और मृदुलता की,
वो बात पुरानी थी।
ग़ुरबत के दिनों में भी,
खुशियां भी थी अपार,
रईसी में खुशी की,
वो बात पुरानी थी।
नत होकर, उन्नत कर
पहुंचे जो शिखर,
शिखर पर टिकने की,
वो बात पुरानी थी।
एक दूजे के लिए जो,
मर मिटते थे कभी,
निगहबान आंखों की,
वो बात पुरानी थी।
सुनील सागर, शिक्षक, बलिया
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