बलिया : दिल को झकझोर देने वाली है माधवी की यह रचना
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बदलाव कहां से आएगा
आवाज़ को तुम न उठाओ, ये समाज सुन न पाएगा,
ऐसे समाज में बदलाव कहां से आएगा?
मत छुओ उस कुएं को, गहरा है साफ न हो पाएगा,
ऐसे समाज में बदलाव कहां से आएगा?
पीछे से तुमने टोक दिया, सत्कर्म कहां हो पाएगा,
ऐसे समाज में बदलाव कहां से आएगा?
बेटी के जन्म पर मातम, बेटे पर खुशी मनाएगा,
ऐसे परिवार के द्वारा बदलाव कहां से आएगा?
सब्जी लेने से पहले जाति-धर्म पूछा जाएगा,
कोरोना लड़ाकुओं के ऊपर बार-बार थूका जाएगा,
ऐसे समाज में बदलाव कहां से आएगा ?
बेटे के शिक्षा के खातिर, बेटी का हक छीना जाएगा,
ऐसे समाज में बदलाव कहां से आएगा ?
हर मुद्दे को जिस देश में जाति-धर्म से तोला जाएगा,
पालघर हो या निर्भया कांड सबको साम्प्रदायिकता से जोड़ा जाएगा,
ऐसे देश में बदलाव कहां से आएगा ?
गरीबों का हक छीनकर अपना खजाना भरा जाएगा,
दो कम्बल को बांटकर एहसान जताया जाएगा,
ऐसे गिद्दों के रहते, बदलाव कहां से आएगा ?
झुग्गियों को हटवाकर, होटल बनाया जाएगा
पिछड़ों को शिक्षा न देकर, आरक्षण से विकलांग बनाया जाएगा,
ऐसे देश में बदलाव कहां से आएगा ?
आगे का हमने सोच लिया हैं, पीछे का दामन जोड़ लिया है,
लेकिन वर्तमान ही अच्छा न रहा तो,
भारत महान कहां रह पाएगा ?
माधवी
मिड्ढ़ा, बलिया
(रचनाकार माधवी, बलिया के वरिष्ठ पत्रकार श्रवण पांडेय की भतीजी है।)
Tags: बलिया
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