बलिया नाव हादसा : 2010 में बिछ गई थी लाशें, जनपद को फिर मिली एक नई टीस ; आखिर कब लेंगे सबक
Ballia Boat Accident : जनपद वासियों के लिए सोमवार का दिन बेशक काफी मनहूस गुजरा। माल्देपुर घाट पर एक मुंडन (ओहार) संस्कार में नाव पलटने से तीन लोगों की मौत हो गई। बड़े और दर्दनाक हादसों को भूल जाना भी एक नए हादसों को न्यौतने जैसा ही है। बलिया शहर से सटे माल्देपुर नाव दुर्घटना फिर से एक नई टीस दे गया। लाजिमी है कि हम फिर वक्त के साथ इस घटना को भी भूल जाएंगे।
सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक ऐसे नाव हादसे का लोग शिकार होते रहेंगे ? जर्जर और मानकविहीन ओवरलोड नावों का संचालन आखिर किसकी शह पर निर्बाध हो रहा है ? सर्वविदित है कि मुंडन संस्कार के लगन के दिन गंगा घाटों पर भीड़ बढ़ जाती है। इसके साथ ही घाट पर वैध व अवैध नावों की गतिविधियां भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है। बावजूद इसके स्थानीय प्रशासन स्तर से जर्जर नाव पर नकेल कसने की कवायद नहीं की जाती। ये जिम्मेदारी आमजन की भी बनती है कि वो बीती घटनाओं से सबक लेकर ओवरलोड व जर्जर नाव पर चढ़ने से परहेज करें।
ओझवलिया नाव दुर्घटना
15 जून 2010 के ओझवलिया नाव दुर्घटना को जिसने भी देखा और सुना है, उस मंजर को स्मरण कर आज भी लोग सिहर उठते है। ओझवलिया नाव दुर्घटना जिले की अब तक की सबसे बड़ी नाव दुर्घटना मानी जाती है। इस हादसे में लगभग 62 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के बाद प्रशासन द्वारा कुछ सक्रियता अवश्य बढ़ी थी, लेकिन समय के साथ लोगों की आस्था का सैलाब देखते हुए पुलिस निष्क्रिय हो गई। ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ करते हुए फिर से ओवरलोड जर्जर नाव का संचालन बदस्तूर जारी रहा।
मांझी नहीं, ईश्वर के हाथों में होती जीवन की पतवार
कहना गलत नहीं होगा कि मुंडन संस्कार में शामिल लोग भले ही ये समझते हो कि उनके जीवन की पतवार मल्लाह के हाथ में है। लेकिन सच तो ये होता है कि इन लोगो के जीवन नैया की पतवार ईश्वर के हाथों में होती है। मांझी को तो केवल पैसों से मतलब होता है। प्रशिक्षित व अप्रशिक्षित नाव संचालको में पहचान करना नामुमकिन होता है कि आखिर कौन प्रशिक्षित और कौन अप्रशिक्षित है।
क्या करना चाहिए
ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए स्थानीय प्रशासन को कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। वैध घाट पर ही नावों का संचालन हो। पंजीकृत और फिट नाव का संचालन हो। इसके साथ ही नाव संचालक को प्रशिक्षण (अनुभव के आधार पर) संचालन प्रमाण पत्र (लाइसेंस) अनिवार्य कर दिया जाय। समय-समय पर इनकी कार्य कुशलता की भी जांच हो। मुंडन संस्कार के दिन घाटों को चिन्हित कर भीड़ उमड़ने की दशा में गोताखोरों की ड्यूटी लगाई जाए।
रवीन्द्र तिवारी की खास रिपोर्ट
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