गुरु कृपा से सब कुछ संभव : आचार्य मोहित पाठक जी से जानिएं गुरु पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व




सनातन संस्कृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में गुरु मे गु का अर्थ अन्धकार या अज्ञान और रू का अर्थ प्रकाश (अन्धकार का निरोधक) अर्थात् अज्ञान को हटा कर प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता हैं। गुरू की कृपा से ईश्वर से साक्षात्कार होता है गुरू की कृपा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है। आदिगुरु परमेश्वर शिव दक्षिणामूर्ति रूप में समस्त ऋषि मुनि को शिष्यके रूप मे शिवज्ञान प्रदान किया था। उनको स्मरण रखते हुए गुरुपूर्णिमा मानाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों। यह पर्व हिन्दू पंचांग के हिन्दू माह आषाढ़ की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मबोध, आत्मचिंतन और आध्यात्मिक उन्नति का दिन भी है। यह दिन आत्मिक गुरु या ईश्वर के उस स्वरूप को समर्पित होता है जो जीवन को दिशा देता है। इस दिन व्रत रखने और गुरु मंत्र का जाप करने से विशेष फल मिलता है। यह दिन शिक्षकों, संतों, साधु-संतों और मार्गदर्शकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का श्रेष्ठ अवसर है।ऐसा भी माना जाता है कि व्यास पूर्णिमा वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
आचार्य मोहित पाठक
महर्षि भृगु वैदिक गुरूकुलम्
रामगढ गंगापुर बलिया
उत्तर प्रदेश


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