'उसका' दर्द देख आंसू नहीं रोक सका बलिया का यह पत्रकार

'उसका' दर्द देख आंसू नहीं रोक सका बलिया का यह पत्रकार




जाके पांव न फटी बिवाई... जी हां, तपती दुपहरी में आग फेंकती सड़कों पर पैदल बदहवाश बढ़ती जा रही भीड़ को देखकर आंख भर आती है। सिर पर गृहस्थी का बोझ। बिना चप्पल के पांव, तो किसी के पांव में टूटी चप्पल। चिलचिलाती धूप में सिर का पसीना सरककर पैरों के तलवे तक पहुंच जा रहे, फिर भी कदम नहीं रुकते। 

न केवल इनका सफर कठिन हैं, बल्कि मंजिल भी मुश्किल से भरा ही है। इन सबसे अलग इनके अंदर एक बवंडर भी मचल रहा है, जो अपनी कर्मभूमि को छोड़ते वक्त उठा था। वही ऐसा दर्द है, जो केवल झेलने वाला ही महसूस कर सकता है।

अभी इसी साल फरवरी की बात है। मुजफ्फरपुर को अलविदा कहने में मुझे अजीब से हालातों का सामना करना पड़ा था। मुजफ्फरपुर करीब साढ़े चार साल मेरी कर्मभूमि रही। जुलाई 2015 में मैंने प्रभात खबर जॉइन किया था। शुरुआती दिक्कतों के बाद अब मन लगने लगा था।

इस बीच दिसंबर 2019 में प्रभात खबर बलिया आया, तो मुझे कुछ दिनों के लिए भेजा गया। फिर जनवरी में ऑफिसियली बलिया ट्रांसफर हो गया। फरवरी में फुर्सत पाकर बोरिया-बिस्तर समेटने गया था मुजफ्फरपुर। बलिया आने की खुशी थी। लेकिन मुजफ्फरपुर पहुंचते ही अजीब लगा। एहसास हो गया था कि आखिरी दिन है।

शाम को कुछ देर के लिए ऑफिस गया, फिर बाइक बनवाने के बहाने निकल गय। वापस लौटने का मन नहीं कर रहा था। इस बीच दफ्तर के साथी और छोटे भाई Nitesh Singh को फोन किया, क्योंकि वह साप्ताहिक अवकाश पर थे। शाम को घूम ही रहे थे, तब तक ऑफिस से फोन आया कि आना है। न चाहकर भी गया, वही विदाई की रश्म निभाने। फिर रात में सो गया। सुबह कई लोगों से मिलना था, लेकिन मन नहीं कर रहा था। चार साल में यह हाल था। वैसे घर लौटने की राह में एक साथी Prem Ranjan जी की जिद पर उनके यहां जाना पड़ा, फिर भारी मन से घर की राह पकड़ ली।

केवल साढ़े चार साल बाद एक शहर छोड़ने का दर्द महसूस किया, जबकि मुझे बगैर किसी नुकसान के ट्रांसफर मिला था। अब उनका दर्द तो केवल महसूस कर सकते है, जो कई दशक अपनों से दूर अनजान शहर में खपा दिए। कइयों ने तो बड़े शहरों को अपनी पूरी जवानी दे दी। बच्चों का जन्म और पढ़ाई-लिखाई परदेस में ही हुआ।

सपने भी देख लिये थे कि भविष्य में गांव का किचकिच छोड़ हमेशा के लिए बस जायेंगे। अब केवल काज-परोज में ही गांव आना-जाना होता था। ऐसे लोग भी सबकुछ छोड़कर गांव लौट आये है। जाहिर है, ऐसे लोगों का दर्द तो कई गुना ज्यादा होगा न।


बलिया के वरिष्ठ पत्रकार धनंजय पांडेय की फेसबुकवाल से

Related Posts

Post Comments

Comments

Latest News

89 एकड़ में फैला बलिया का ददरी मेला : DM ने साझा की कई अहम जानकारी, मेला का Date भी बढ़ा 89 एकड़ में फैला बलिया का ददरी मेला : DM ने साझा की कई अहम जानकारी, मेला का Date भी बढ़ा
बलिया : जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह ने कहा कि ददरी मेला बलिया की पहचान है, जिसे भव्यता और पारंपरिक स्वरूप...
वंदे मातरम का 150 वर्ष : बलिया में छात्रों की रैली को डीएम ने दिखाई हरी झंडी
बलिया में SIR को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं की कार्यशाला, मिले टिप्स
प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या : नशे की गोलियां खिलाकर नहर में फेंका, ऐसे रची मौत की खौफनाक साजिश
8 November Ka Rashifal : कैसा रहेगा अपना शनिवार, पढ़ें आज का राशिफल
Ballia News : डूबने से 11 वर्षीय बच्चे की दर्दनाक मौत
Ballia में एकदिवसीय युवा उत्सव में दिखी प्रतिभा की चमक