बागी धरती से निकली आवाज 'फेर लो मुंह तोड़ लो रिश्ते...'
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फेर लो मुंह तोड़ लो रिश्ते सभी बाजार से
इश्क करना सीख लो, घर के दरो-दीवारों से
घर को दोजख मत कहो, घर ही बचाएगा तुम्हें
धूप से, लू से, कोरोना वायरस से
रेस ये बिल्कुल अलहदा किस्म की है साथियों
जीतना मुमकिन नहीं इस रेस को रफ्तार से
बस जरा ये धुंध छट जाने दो तुम, फिर शौक से
चूम लेना रौशनी के गेसुओं को प्यार से
दुःख भले ही हिमालय-सा हो मगर कद में कभी
हो नहीं सकता बड़ा इंसान की किरदार से
चांद का मुद्दा जरूरी है कि मसला भूख का
पूछिए जाकर किसी मजदूर के परिवार से
कारखाना बंद है तो बंद रहने दो 'शशी'
जां से ज्यादा है मोहब्ब्त या कारोबार से
शशि प्रेमदेव 'कवि'
बलिया
Tags: गजल
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