प्रकृति के पांच मूलभूत तत्वों में अति महत्वपूर्ण है वायु, जानें कैसी-कैसी होती हैं हवाएं
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भारत में ग्रीष्म एवं शीत ऋतु की मानसून की दिशा।
बलिया। समग्र विकास एवं शोध संस्थान बलिया के सचिव पर्यावरणविद् डा. गणेश कुमार पाठक ने विश्व पवन (वायु) दिवस पर वायु के महत्व एवं वायु के प्रकार पर विस्तृत जानकारी दी। बताया कि प्रकृति के पांच मूलभूत तत्वों (क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर) में वायु (समीर) अति महत्वपूर्ण तत्व है, जो जीवन का आधार है। वायु के बिना हम जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते। यही कारण है कि जिस ग्रह के पास उसका वायुमंडल नहींं है, उस ग्रह पर जीवन नहीं है।
वातावरण के भीतर एक अदृश्य रूप में स्वादरहित एवं गंधरहित वायु मौजूद रहती है, जिसमें अनेक गैसें मिली होती हैं। वायु में एक तरह का भार भी होता है, जिसका आभास हमें ऊंचाई पर जाने पर होता है। यही कारण है कि जब हम ऊंचे पहाड़ों की उपरी चोटी पर जाते हैं या वायुयान में ऊंचाई पर यात्रा करते हैं तो हमें आक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है।वायु का दाब ऊंचाई पर कम होने के कारण ही ऐसा होता है। कभी-कभी तो हमारे नाक-कान से खून भी निकलने लगता है। पृथ्वी के सतह के निकट वायु अति सघन होती है। कारण कि यहां पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण बल काम करता है। किन्तु यही वायु ऊंचाई पर विरल हो जाती है।
डॉ गणेश कुमार पाठक
क्यों प्रवाहित होती है वायु
वायु के प्रवाहित होने का मुख्य कारण वायु का दाब होता है। वायु अधिक दाब से निम्न दाब की तरफ प्रवाहित होती है। कारण कि जब निम्न वायुदाब की हवा हल्की होकर ऊपर की तरफ उठती है तो वह स्थान वायुरिक्त हो जाता है और उस रिक्त स्थान के भरने के लिए उस स्थान के निकटवर्ती क्षेत्रों से ठण्डी हवा उस स्थान पर लपकती है। वायु की दिशा एवं वेग दोनों ही वायुदाब की प्रवणता पय निर्भर करता है। इस तरह धरातल पर वायु के प्रवाहित होने का प्रमुख कारण वायुदाब में अंतर ही होता है।
धरातल के लगभग समान्तर प्रवाहित होने वाली वायु को ही पवन कहा जाता है। जलवायुवेत्ता ट्रिवार्था के अनुसार ऐसी गतिशील वायु को पवन कहा जाता है जिसकी दिशा अनिवार्यतः पृथ्वी तल के समान्तर होती है। वायु उधर्वाधर एवं क्षैतिज दोनों रूपोमें प्रवाहित होतीहैं।
कैसी-कैसी होती हैं हवाएं
हवाएं मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं- स्थाई, अस्थाई एवं स्थानीय पवन। जिस दिशा में पूरे वर्ष हवाएं चलती हैं, उन्हें स्थाई या प्रचलित या निश्चिंत या ग्रहीय या सनातनी हवाएँ कहा जाता है। इनको तीन उपवर्गों में बांटा गया है- व्यापारिक या संमार्गी पवन, पछुवा पवन एवं ध्रुवीय पवन। अस्थाई हवाएँ मानसूनी हवाएं होती हैं, जिनका वर्षा के परिप्रेक्ष्य में विशेष महत्व होता है। किसी क्षेत्र में मौसम के अनुसार प्रवाहित होने की हवा को मानसूनी वायु कहा जाता है, जो वर्ष में कमसे कम दो बार अपनी दिशा अवश्य बदल देती है। मानसूनी हवाएं भी दो प्रकार की होती हैं- ग्रीष्मकालीन मानसून एवं शीतकालीन मानसून। तीसरी स्थानीय पवनें किसी स्थान विशेष से प्रवाहित होती हैं इसी लिए इन्हें स्थानीय पवन कहा जाता है।
स्थानीय पवनों में सागरीय एवं स्थलीय समीर, पर्वतीय एवं घाटी समीर, चिनूक, फाँन, सिराको,खमसिन, बोरा, हरमट्टन, लू, ब्लिजर्ड आदि मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त कुछ क्षेत्रों इनसे भिन्न शीत एवं उष्ण स्थानीय हवाएं भी प्रवाहित होती हैं। ये स्थानीय हवाएं अपने गुण एवं प्रभाव के अनुसार ही अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से पुकारी जाती हैं। ये संथानीय हवाएं स्थानीय स्तर पर आंधी-तुफान एवं वर्षा लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जैसे भारत में गर्मी में सक्रिय 'लू' एवं जाड़े में शीत लहर का प्रभाव तथा गर्मी में स्थानीय स्तर पर चक्रवातीय हवाओं का उत्पन्न होना। इस प्रकार सभी हवाओं का अपना-अपना गुण एवं अवगुण होता है, जिसके अनुसार ये अपने प्रभाव क्षेत्र को प्रभावित करते हुए मौसम के परिवर्तन में भी अहम् भूमिका निभाती हैं।
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