देर से ही सही, इस उम्मीद के साथ अन्तरराष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस की बधाई

देर से ही सही, इस उम्मीद के साथ अन्तरराष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस की बधाई


बलिया। तीन मई को अन्तरराष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस मनाया गया। कोरोना रूपी वैश्विक अफरातफरी के बीच इसकी रश्म अदायगी भी की गई। पिछले चालीस दिनों से वैश्विक महामारी से जूझ रहे कलमकारों को किसी ने हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं दी तो किसी ने जंजीरो में जकड़ी हुई लेखनी के सहारे वस्तुस्थिति को रखा। मैं स्वयं बीते तीन दिनों से इस दिवस को लेकर काफी उधेड़बुन में रहा। वस्तुतः मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती मन का व्यथित होना था। वजह की इस कोरोना काल में प्रेस की स्वतंत्रता को जो चुनौतियों मिल रहीं हैं, वह किसी भयावह सपने से कम नहीं है। 

इन दिनों इस वैश्विक महामारी की आड़ में मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की प्रवृत्ति काफी तेजी से फैली है। हक़ीक़त बयां करने वाली खबरों को न सिर्फ फेक न्यूज़ बताया जा रहा है, बल्कि ऐसी खबरें चलाने वाले पत्रकारों के साथ अपमानजनक व्यवहार भी किया जा रहा है। अपनी जवाबदेही से बचने के लिए सरकार और नौकरशाहों द्वारा मीडिया पर प्रत्याक्रमण करने की नीति न केवल किसी भी लोकतंत्र के लिए खतरनाक है, बल्कि यह मीडिया की हद निर्धारित करने की नई परंपरा की शुरुआत भी है। लॉक डाउन के दौरान देश के अलग अलग हिस्सों में पत्रकारों के साथ हुए दुर्व्यवहार व कानूनी शिकंजे में कसने के बहुतेरे मामले प्रकाश में आ चुके  हैं। 

बानगी के तौर तमिलनाडु में सिम्पलिसिटी न्यूज़ पोर्टल के संस्थापक और सीईओ पांडियन को देखा जा सकता है। एपिडेमिक डिसीज़ एक्ट के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार पांडियन का गुनाह सिर्फ इतना था कि इन्होंने खाद्य वितरण में कथित भ्रष्टाचार से संबंधित एक खबर प्रकाशित कर दी थी। यही नहीं नई दिल्ली और हैदराबाद में पत्रकारों के साथ पुलिस द्वारा की गई बदसलूकी की घटनाएं भी सुर्खियों में रही हैं। आज पूरा विश्व कोविड-19 के विनाशक स्वरूप से हतप्रभ हैं। राजनीतिक गतिविधियां ठप हैं। धरना-प्रदर्शन पर रोक है। ऐसा लगता है मानों अफरातफरी के माहौल में सरकारें असीमित शक्तियों का प्रयोग पत्रकारों पर अंकुश लगाने के लिए ही कर रहीं है।

सरकार व अफसरशाही द्वारा की जा रही सर्विलांस की यह प्रवृत्ति यदि आगे भी जारी रही तो इसका दीर्घकालिक दुष्प्रभाव प्रेस की स्वतंत्रता पर पड़ेगा। वजह की लालफीताशाही को बेबाक, बेखौफ व सच्चाई की पथरीली जमीन कभी रास नहीं आती। सरकार का सर्वोच्च न्यायालय से इस संबंध में मार्गदर्शन मांगना, सब कुछ ठीक न होने का संकेत दे रहा है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने  प्रेस की स्वतंत्रता और इस महामारी के दौरान जिम्मेदारी पूर्ण रिपोर्टिंग के मध्य संतुलन स्थापित करते हुए कहा कि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया को पैनिक उत्पन्न करने वाले समाचारों के प्रसारण से बचना चाहिए। बावजूद इस वैश्विक महामारी के बारे में मुक्त विचार विमर्श पर रोक नहीं लगाया जा सकता।

वैसे भी हाल के वर्षों में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। इस वर्ष के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दो स्थानों की गिरावट के साथ हम 142 वें स्थान पर हैं। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार हमारे देश में निरंतर मीडिया की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। पत्रकार, पुलिस की हिंसा के शिकार हो रहे हैं। आपराधिक समूहों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों एवं राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। मेरे हिसाब से प्रेस की स्वतंत्रता की समस्या की जड़ें प्रेस के भीतर ही फैली हुई हैं और इसके समाधान का कोई भी प्रयास वैसा ही कठिन है, जैसे रोगी द्वारा स्वयं की सर्जरी की कोशिश करना। कोविड काल में भी मीडिया के एक बड़े भाग ने सस्ते, दिखावटी, सजावटी और चाटुकारिता को बढ़ावा दिया है।  

भारत जैसे देश में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। प्रशासन की असंवेदनशीलता भी अक्सर चर्चा में रहती है। यह तय कर पाना कठिन हो जाता है कि यह असंवेदनशीलता नीति निर्धारण के स्तर पर अधिक है या क्रियान्वयन के स्तर पर, यह तंत्र के स्तर पर अधिक व्याप्त है या व्यक्तिगत नेतृत्वकर्ताओं के स्तर पर इसका फैलाव अधिक है। यह चरित्र कोविड-19 की चुनौती के दौरान भी देखने को मिली है। यदि इस वैश्विक महामारी के भीषण दौर में मीडिया को जनता की पीड़ा की अभिव्यक्ति से रोका गया तो प्रशासनिक अमले के निरंकुश होने का खतरा बढ़ जाएगा। 

प्रशस्तिगान सभी को प्रिय होता है, किन्तु यह समय इसका आनंद लेने का नहीं है, बदलाव के लिए कभी कभी जनता की करुण पुकार भी सुननी चाहिए। कोरोना बहुत कुछ नष्ट करने पर आमादा है, किंतु हमें पुरजोर कोशिश करनी होगी कि यह स्वतंत्र, निर्भीक और सच्चाई पसंद मीडिया को अपना शिकार न बना सके। अंत में आप सभी पत्रकार बन्धुओं को देर से ही सही इस औपचारिक दिवस की अनन्त शुभकामनाएं देता हूं, लेकिन इस विश्वास के साथ कि राजनीति व अफसरशाही को समय समय पर आपकी लेखनी सच का स्वाद चखाती रहेगी।

बलिया का एक पत्रकार

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