कोरोना में पत्नी और पिता को खोने वाले शिक्षक ने बदल दी सरकारी स्कूल की तस्वीर, पढ़ें टीचर की दिल छू लेने वाली कहानी




मेरठ। कोरोना की दूसरी लहर में अपनी शिक्षिका पत्नी और पिता खो चुके एक शिक्षक स्कूल और अपने छात्रों को ही सब कुछ मान लिया। स्कूल में वॉल पेंटिंग, पार्क, स्मार्ट क्लास, लाइब्रेरी, जन समूह, पंखे तक उन्होंने अपने पास से लगवाए हैं। इतना ही नहीं, हर महीने माली को भी वह अपनी जेब से सैलरी देते हैं। स्कूल की छुट्टी के बाद और रविवार को वह खुद अपना ज्यादातर समय स्कूल के लिए देते हैं। वहां झाड़ू भी खुद लगाते हैं। नतीजतन स्कूल की सूरत बदल गयी है। कक्षा एक से 8वीं तक का यह स्कूल आज मेरठ मंडल के 6 जिलों में न सिर्फ टॉप पर है, बल्कि आदर्श स्कूल भी बन गया है।
यह उच्च प्राथमिक विद्यालय मेरठ के माछरा ब्लॉक का है। यहां शिक्षक अजय कुमार की तैनाती है। अजय कुमार बहलोलपुर गांव के निवासी हैं। वर्ष 2011 से अजय बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षक हैं। इससे पहले इनकी तैनाती मेरठ के ही गोविंदपुर स्कूल में थी। वहां भी उन्होंने निजी पैसे से उस स्कूल में कई काम कराए है। पौने तीन साल पहले अजय का स्थानांतरण अपने गांव के ही स्कूल पर हो गया।
चिकित्सक डॉ. राजेंद्र सिंह के पुत्र अजय कुमार ने लम्बे समय तक शादी नहीं की, लेकिन पिता लगातार उन पर शादी का दबाव बनाते रहे। फिर, वर्ष 2020 में अजय कुमार की शादी फिरोजाबाद की रहने वाली रुचि (33) से हुई। रुचि फिरोजाबाद में सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं।वर्ष 2021 में कोरोना की दूसरी लहर में रुचि कोरोना की जद में आ गई। पत्नी को बचाने के लिए अजय ने काफी कोशिश की, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। शादी के पांच महीने बाद ही 27 अप्रैल को रुचि कोरोना से जिंदगी की जंग हार गयी।
शिक्षक अजय अपनी पत्नी की मौत से अभी उबर भी नहीं पाए थे, तभी पिता डॉ. राजेंद्र सिंह का भी निधन 29 मई 2021 को हो गया। अल्प समय के अंतराल में पत्नी और पिता की मौत ने अजय को पूरी तरह तोड़ दिया। अजय बताते हैं कि, 'मेरे लिए वह सबसे बुरा दौर रहा, जिसे कभी भूल नहीं सकता। पहले पत्नी, फिर पिता का दुनिया से जाना।' यह कहते हुए अजय काफी भावुक हो गए। अजय बताते हैं, 'मेरा यह स्कूल और यहां पढ़ने वाले बच्चे अनमोल धरोहर हैं। मैं यह नहीं बताना चाहता कि इस स्कूल में निजी पैसा खर्च कर रहा हूं। मगर, इस स्कूल के सौंदर्यीकरण के लिए भरसक प्रयास किया हूं। कोशिश रहेगी कि स्कूल को और बेहतर बनाया जा सकें।' बताया कि यहां जो भी जरूरत होती है, वह बच्चों को अगली सुबह स्कूल में मिलती है।
अजय बताते है कि, मैं बेसिक शिक्षा विभाग में जब टीचर बना था, तब पिता की खुशी दोगुनी हो गई। वह कहते थे कि गांवों में लोग प्रधान के चुनाव में बहुत खर्च करते हैं। लेकिन वह पांच साल का चुनाव होता है। इसलिए कुछ ऐसा करना कि गांव ही नहीं, पूरा जिला और समाज याद करे। पिता जी आज नहीं है, लेकिन उनकी प्रेरणा हमेशा मेरे साथ रहेगी। पिता की सीख से मैंने अपने इस स्कूल को इस मुकाम तक पहुंचा सका हूं। अजय ने इस बार धनतेरस पर अपने स्कूल के बच्चों को बर्तन बांटे।दीपावली पर रंग-बिरंगी लाइट से स्कूल को सजाया।

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