पितृविसर्जनी अमावस्या पर विशेष : पितरों के तर्पण और श्राद्ध से मिलता हैं विशेष पुण्य फल



सनातन परंपरा में आश्विन मास की अमावस्या का विशेष धार्मिक महत्व है। इस दिन पितृपक्ष का समापन होता है और श्राद्ध, तर्पण तथा पिंडदान जैसे कर्मकांडों का अंतिम दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितरों को श्रद्धा और विधिवत पूजा के साथ विदाई दी जाती है। जिन लोगों को अपने पितरों के निधन की तिथि ज्ञात नहीं होती, वे सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध कर सकते हैं। यह दिन सबसे महत्वपूर्ण पितृ तिथि माना जाता है। पंचांग के अनुसार सर्वपितृ अमावस्या रविवार, 21 सितंबर को मनाई जाएगी।
बलिया : आश्विन कृष्णपक्ष में प्रतिपदा से लेकर पितृविसर्जनी अमावस्या तक सूर्य रश्मियों की प्रधानता होती है। रश्मियों के साथ ही पितृगण पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। उन्हीं के लिए पितृपक्ष पर्यन्त, तर्पण, पिण्डदान, श्राद्ध कर्म संपादित किये जाते है। पितरों के साथ ही आठ वसु, नवग्रह ब्राहमण, रुद्र, अनि, विश्वेदेव, मनुष्य और पशु-पक्षी भी सन्तुष्ट होते है। नीच ग्रह भी अपना कुप्रभाव छोड़कर मनोवांछित फल देने लगते है।
बलिया के इंदरपुर (थम्हनपुरा) गांव निवासी ज्योतिषाचार्य डॉ अखिलेश कुमार उपाध्याय के मुताबिक, ज्योतिषशास्त्र में श्राद्धकर्म का विशेष महत्व है, जो लोग जाने-अनजाने, भूलवश अपने पितरों का तर्पण श्राद्ध नहीं करते उन्हें पितृगण श्राप देते हैं। पितृदोष के रूप में अकालमृत्यु, भाग्योदय न होना, विवाह में बिलम्ब, सन्तान न होना, खून की कमी व बाधाओं से छुटकारा नहीं मिल पाता है। पितृपक्ष में पितरों को तर्पण एवं उन्हें अर्घ्य तथा पिण्डदान देने से पितृदोष से मुक्ति पायी जा सकती है।
पितृपक्ष में यदि कोई व्यक्ति तिथि पर पिंडदान न कर पाया हो या तिथि ज्ञात न हो तो पितृविसर्जनी अमावस्या के दिन पार्वणश्राद्ध किया जा सकता है। अगर किसी कारणवश श्राद्ध न कर सकें तो केवल ब्राह्मण भोजन करा देने से ही श्राद्ध हो जाता है। अगर ब्राह्मण भोजन की व्यवस्था न बन सकें तो व्यक्ति को घास काटकर पितरों के नाम पर गाय को खिलाने पर श्राद्ध हो जाता है। यदि घास न मिल सकें तो दोनों भुजाओं को उठाकर पितरों की प्रार्थना करने पर पितर प्रसन्न होकर आशीवीद देते हैं।
पितरों के श्राद्ध न करने पर पितर अपने सगे-सम्बन्धियों का खून चूसने लगते है। उस परिवार में पुत्र उत्पन्न नहीं होता है। कोई निरोग नहीं रहता। लम्बी आयु नहीं होती। किसी तरह का कोई कल्याण नहीं हो पाता और मरने के बाद भी नरक जाना पड़ता है। श्राद्ध कर्म कुतुप काल 10:24 के बाद मध्याह्न काल में ही करना चाहिये।इसी समय ही पितरों का आगमन होती है। श्राद्ध कर्म योग्य ब्राह्मण से करने पर ही पितरों को शांति प्राप्त होती है।

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