रिंग सेरेमनी : अनामिका में ही क्यों पहनाई जाती है अंगूठी, जानें इसका रहस्य

रिंग सेरेमनी : अनामिका में ही क्यों पहनाई जाती है अंगूठी, जानें इसका रहस्य


जातक के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि मे होता है, वह उसकी राशि होती है। जिस नक्षत्र में चंद्र होता है, वही जातक का नक्षत्र होती है। सूर्य जिस लग्न में होता है, वह उसका लग्न होता है। इसकी गणना कर जातक की जन्म कुंडली व पत्री निर्मित की जाती है। इस पत्री के अनुसार ग्रहों की स्थिति जानकर हम रत्न पहनने की सलाह प्रदान करते हैं।

अब रही विवाह या सगाई में होने वाले जोड़ें को अंगूठी पहनाने की। यह परंपरा पूरे विश्व में प्रचलित है। अंगूठी अनामिका में ही पहनाई जाती है, लेकिन क्यों ?

1. इस अंगुली के नीचे सूर्य पर्वत होता है, जो ग्रहों का राजा है। वह अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है। इसका अभिप्राय है कि हम अग्नि को साक्षी मानते हुए जीवन भर साथ निभाने का संकल्प ले रहे हैं। साथ ही इससे सूर्य का विच्छेदक प्रभाव भी नियंत्रित होता है।
2. यह अंगुली शुक्र का भी प्रतिनिधित्व करती है, जिस कारण वैवाहिक जीवन सुखद बनता है।
3. हाथ का अंगूठा माता-पिता, तर्जनी भाई-बंधु, मध्यमा स्वयं तथा कनिष्ठा पुत्रादि का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि तर्जनी अंगुली जीवन साथी को दर्शाती है।
4. हीरा शुक्र का रत्न है, जो वैवाहिक जीवन को सफल बनाता है। प्लैटिनम भी शुक्र का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके कारण इसकी अंगूठी पहनाने का प्रचलन है।
5. स्वर्ण धातु वृहस्पति ग्रह को प्रबल करती है, जो कन्या के वैवाहिक जीवन सफल बनाने के साथ पुत्रादि व धन वैभव का भी कारक है। इस कारण सोने में अंगूठी निर्मित कराया जाता है।
6. अनामिका से एक नस सीधे हृदय को जाती है, जिसे वेन ऑफ लव कहते हैं। इस कारण भी इसमें अंगूठी पहनाया जाता है, ताकि हार्दिक जुड़ाव रहे। 

किसी भी विवाह की शुभता व सुखमय वैवाहिक जीवन हेतु वृहस्पति व शुक्र ग्रह की ही मुख्य भूमिका होती है। पुरुष हेतु शुक्र व कन्या हेतु वृहस्पति का शुभ होना श्रेयस्कर होता है। यह दोनों ग्रह सौम्य होते है तथा सामान्यतया इसके रत्न जड़ित अंगूठी धारण करने से बुरा प्रभाव नही पड़ता। इन रत्नों का प्रभाव पहनने के एक माह के बाद ही ज्ञात हो पाता है। यदि कोई अशुभ प्रभाव दृष्टिगोचर हो तो तय है कि कुंडली में ये मारक या अशुभ स्थानों के स्वामी हों। ऐसी स्थिति में योग्य ज्योतिषी से परामर्श लेकर इसका समाधान कराया जाना चाहिए। इसे धारण करने हेतु वाग्दान व सगाई मुहर्त ही पर्याप्त है। इन रत्नों के धारण करने हेतु बृहस्पतिवार व शुक्रवार सबसे शुभ होते है, परंतु मुहूर्त के दिन यह वार न हो तो मुहूर्त के दिन इनकी वार बेला में धारण कराना चाहिए। पुरोहित से पहले ही रत्नपूजा करा लेनी चाहिए।
 
इ.भगवती शरण पाठक
ज्योतिर्विद
बलिया/प्रयागराज/मिर्ज़ापुर
8004489100

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