विलुप्ति के कगार पर खड़े संकटग्रस्त 'सूंसों' का बलिया में मिलना शुभ संकेत

विलुप्ति के कगार पर खड़े संकटग्रस्त 'सूंसों' का बलिया में मिलना शुभ संकेत



बलिया। अविरल, निर्मल गंगा को लेकर डीएम श्रीहरि प्रताप शाही की मेहनत रंग लाई। गर्गाश्रम, महाभारत महाकाव्य के रचयिता वेदव्यास की जन्मभूमि बाँसथाना के गंगा-तमसा संगम द्वीप के पास मिली लुप्तप्राय दुर्लभ जलजीव सूंसों की समृद्ध बस्ती। इस संदर्भ में जानकारी देते हुए गांगेय घाटी की जैवविविधता के शोधकर्ता शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने आज यहां बताया कि डाल्फिनें मूलतः समुद्री प्राणी हैं। विश्व में इनकी कुल 88 प्रजातियां पाई जाती हैं, इनमें से चार प्रजाति नदियों के मीठे पानी में पाई जाती थीं। लेकिन विकास की दौड़ में 1966 में नरौरा, 1975 में फरक्का और 1984 ईस्वी में बिजनौर मे बनने के कारण गंगा नदी के इस सौम्य सहज, सहनशील प्राणी का प्राकृतिक घर तीन भागों में बंट गया। नरौरा परमाणु संयंत्र एवं कानपुर के कारखानों से निकलने वाले रासायनिक कचरे और गंगा की तलहटी के किसानों द्वारा रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, औद्योगिक और नगरीय कचरे ने गांगेय डाल्फिनों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया।

1982 में इनकी कुल आबादी गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों में मात्र छः हजार थी, जो अब घटकर मात्र दो हजार के लगभग बची है। भारत सरकार ने 1996 ईस्वी में लुप्तप्राय प्राणी घोषित कर दिया। जैवविविधता की कड़ी मे जल संकट का स्पष्ट संकेत वाली इस घटना से जीव वैज्ञानिकों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई और देश में स्वच्छ गंगा का अभियान शुरू किया गया। श्री कौशिकेय ने कहा कि एक अनुमान के अनुसार 15 लाख मैट्रिक टन रासायनिक उर्वरक और 21000 टन टेक्निकल ग्रेड पेस्टीसाइड प्रतिवर्ष गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है, जो इन जलीय जीवों के लिये जानलेवा साबित हो रहा है।

श्री कौशिकेय ने बताया कि बलिया जिले में गंगानदी सदर तहसील के सिकन्दरपुर से सिताबदियर के नौबरार तक 120 किमी की यात्रा करती है। पहले इस दियारे मे केवल रबी की बोने और काटने वाली खेती होती थी, तरबूज, खरबूजा और परवल की खेती में भी रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का बिलकुल प्रयोग नहीं किया जाता था। लेकिन अब किसानों द्वारा इन जहरीले रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है, जैवविविधता के लिये घातक साबित हो रहा है। गंगाघाटी की जलशोधक वनस्पतियां कंटीली भटकटैया -रेंगनीं, धमोई, झड़बेरी, हिंगुवां, लपटा, अकवन, नारुन, छौवा विलुप्त हो गए हैं। गंगा के प्राकृतिक सफाईकर्मी चील, गिद्ध, गौरया, ऊदबिलाव, बनविलाव, घड़ियाल और कछुओं को प्रजाति भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में सूंसों का मिलना बड़ी बात है।

गांगेय डाल्फिन

मीठे पानी की इस डाल्फिन की चार प्रजातियां थीं, जिसमें से अब मात्र तीन प्रजाति ही बची है। इन्हें सूंस या सोंस भी कहते हैं। एक वयस्क गांगेय डाल्फिन का वजन 70 से 100 किलो तक होता है।मादा की नाक और शरीर की लम्बाई नर से अधिक होती है। मादा डाल्फिन गर्भधारण करने के नौ महिने बाद एकबार मे केवल एक बच्चे को जन्म देती है। भारत की गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, मेघना के अलावा बंगलादेश के करनाफुली, सांगू, नेपाल के करनाली एवं सप्तकोसी नदी और एशिया के बाहर अमेजन नदी यह पाई जाती हैं।

Post Comments

Comments

Latest News

जेल से रिहाई के बाद अल्लू अर्जुन का आया पहला बयान, बोले- ‘जो हुआ उसका...’ जेल से रिहाई के बाद अल्लू अर्जुन का आया पहला बयान, बोले- ‘जो हुआ उसका...’
Allu Arjun First Statement After Bail : साउथ सुपरस्टार अल्लू अर्जुन जेल से रिहा हो गए हैं। जमानत के बाद...
योगी सरकार की बड़ी कार्रवाई : एसडीएम सस्पेंड, 11 दिन पहले गिरफ्तार हुआ था पेशकार
Model Paper 2025 : यूपी बोर्ड ने जारी किये 10वीं-12वीं के मॉडल प्रश्नपत्र, यहां देखें
हाईकोर्ट ने बीएसए के खिलाफ जारी किया वारंट
बलिया के इस युवा कवि को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान करेगा पुरस्कृत
बलिया में शानदार रहा यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का आउटरीच कार्यक्रम, व्यापारियों को मिला महत्वपूर्ण मार्गदर्शन
14 December Ka Rashifal : आज कैसा रहेगा अपना शनिवार, पढ़ें दैनिक राशिफल