'ठोक दो' संस्कृति से नहीं सुधर रहे 'इंस्पेक्टर मातादीन'
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एके पाठक की विशेष रिपोर्ट
बलिया। हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने अपनी रचना 'इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर' के जरिये वर्षों पूर्व पुलिस के भ्रष्ट चेहरे को उजागर किया था। करीब पांच दशक बाद भी पुलिस का चाल-चरित्र और वही चेहरा आज भी बरकरार है। व्यवस्था के प्रतिनिधि के तौर पर दर्शाए गए 'इंस्पेक्टर मातादीन' ने गोरखपुर कांड के जरिये अपनी प्रासंगिकता को साबित भी कर दिया है।
बहरहाल उक्त रचना के बाद प्रदेश की बागडोर दर्जनभर से अधिक लोंगों ने संभाली, लेकिन कोई पुलिस का दागदार चेहरा नहीं बदल पाया। हर सरकार में कुछ पुलिस का बर्बर और अमानवीय चेहरा शासन की किरकिरी कराता रहा है। गोरखपुर कांड ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पुलिस किसी भी कीमत पर अपना यह चेहरा बदलने को राजी नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही दागी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की बात करें। जांच समिति बैठाएं, पर रिपोर्ट की सच्चाई सवालों से परे नहीं होगी। यदि ईमानदारी से रिपोर्ट प्रस्तुत कर दिया जाए तो निःसन्देह पुलिसिया व्यवस्था में बड़े बदलाव की नींव पड़ जाएगी। पर गोरखपुर के डीएम और एसपी को जो चेहरा घटना के बाद सामने आया है, उससे सच्चाई बाहर आने की कल्पना ही की जा सकती है। फिर भी गोरखपुर कांड के जिम्मेदारों को कड़ी सजा मिलने और इसकी पुनरावृत्ति न होने की उम्मीद करते हैं।
एक अंश व्यंग्य कथा से
'देखो आदमी मारा गया है, तो यह पक्का है कि किसी ने उसे जरूर मारा। कोई कातिल है। किसी को सजा होनी है। सवाल है किसको सजा होनी है? पुलिस के लिए यह सवाल इतना महत्व नहीं रखता, जितना यह सवाल कि जुर्म किस पर साबित हो सकता है या किस पर साबित होना चाहिए। कत्ल हुआ है, तो किसी व्यक्ति को सजा होगी ही। मारने वाले को होती है या बेकसूर को, यह अपने सोचने की बात नहीं है। मनुष्य-मनुष्य सब बराबर है। सबमें उसी परमात्मा का अंश है। हम भेदभाव नहीं करते। यह पुलिस का मानवतावाद है।' मातदीन ने समझाया, 'देखो, मैं समझा चुका हूं कि सबमें उसी ईश्वर का अंश है। सजा इसे हो या कातिल को फांसी पर तो ईश्वर ही चढ़ेगा न ! फिर तुम्हें कपड़ों पर खून मिल रहा है। इसे छोड़कर तुम कहां खून ढूंढते फिरोगे? तुम तो भरो एफआईआर।"
इन घटनाओं ने कराई सरकार की किरकिरी
-28/29 सितंबर 2018 को एक सिपाही ने गोली मारकर एप्पल कंपनी के एरिया सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी की हत्या कर दी।
-अक्टूबर 2019 को झांसी पुलिस के एनकाउंटर में पुष्पेंद्र यादव की मौत। परिजन इसे फेक एनकाउंटर बताते रहे।
-14 फरवरी 2020 को हाथरस में गैंगरेप की घटना में पुलिस जिस तरह आरोपियों को बचाती रही, उसकी सीबीआई ने पोल खोल दी।
-तीन जून 2020 को सुल्तानपुर के कुड़वार थाना लॉकअप में राजेश कोरी की मौत।
-11 फरवरी 2021 को जौनपुर के बक्शा थाना में पुलिस की पिटाई से चकमिजापुर निवासी कृष्णा यादव उर्फ पुजारी नामक युवक की मौत।
-27 मार्च 2021 को अंबेडकर नगर स्वाट टीम की कस्टडी में जियाउद्दीन की मौत।
-22 मई 2021 को उन्नाव में सब्जी विक्रेता फैसल की पुलिस की पिटाई से मौत।
-27 सितंबर 2021 को पुलिस की बर्बरता से मनीष गुप्ता की मौत।
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