निशाने पर लगा तीर और मुड़ गयी चुनाव-चर्चा की दिशा!

 निशाने पर लगा तीर और मुड़ गयी चुनाव-चर्चा की दिशा!





योगेंद्र यादव

अध्यक्ष, स्वराज इंडिया

yyopinion@gmail.com



लगता है गलती से ही सही, तीर निशाने पर जा लगा है. जब से राहुल गांधी ने गरीबों को ₹छह हजार महीने देने की चुनावी घोषणा की है, तब से दोनों चुनावी कैंप में खलबली मची है. कांग्रेस को समझ नहीं आ रहा कि उसने क्या घोषणा की है! भाजपा को समझ नहीं आ रहा कि इस घोषणा का जवाब कैसे दे!



भाजपा की घबराहट का कोई प्रमाण चाहिए, तो प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र के नाम संदेश को देख लीजिये. सच यह है कि लो-ऑर्बिट सैटेलाइट को मारने की क्षमता विकसित करने पर सार्वजनिक क्षेत्र का सुरक्षा संगठन डीआरडीओ पिछले एक दशक से काम कर रहा था. यूपीए सरकार के दौरान 7 मई, 2012 को यह काम पूरा हो गया था और डीआरडीओ ने आधिकारिक घोषणा कर दी थी कि अब भारत ने लो-ऑर्बिट सैटेलाइट को मार गिराने की तकनीक हासिल कर ली है.



जाहिर है, इस घोषणा से पहले परीक्षण हुए होंगे, लेकिन चुपचाप. यह भी कि साल 2012 से अब तक भी परीक्षण का सिलसिला जारी रहा होगा. लेकिन, अब इसे जगजाहिर कर दिया गया है और प्रधानमंत्री ने चुनाव के बीच राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित कर श्रेय लेने की कोशिश की. यानी पद की मर्यादा और चुनाव की आचार संहिता गयी भाड़ में!



सरकार कहती है कि भारत ने क्षमता तो पहले हासिल कर ली थी, लेकिन कांग्रेस सरकार ने खुला परीक्षण करने की अनुमति नहीं दी थी. हो सकता है ऐसा हुआ हो. लेकिन, यहां भी कई सवाल उठते हैं. अगर इस सरकार ने पिछली सरकार का कोई सामरिक फैसला पलटा है, तो उसकी टीवी पर घोषणा की क्या जरूरत है? इस देश की परंपरा है कि विदेश नीति और सामरिक मामलों को राजनीति में नहीं घसीटा जाता.



अगर मोदीजी इसका श्रेय खुद लेना चाहते हैं, तो जाहिर है विपक्ष तो हमला करेगा ही. राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में सार्वजनिक विवाद की जो परंपरा मोदीजी शुरू कर रहे हैं, उसकी दीर्घकाल में देश को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी? जो भी हो, अगर यही सब करना था, तो इसे दो महीने पहले या दो महीने बाद क्यों नहीं किया जा सकता था? आचार संहिता की धज्जियां उड़ाते हुए राष्ट्र के नाम संदेश इस तरह प्रसारित करने से राष्ट्र का क्या हित हुआ?



बात साफ है. मामला राष्ट्रीय सुरक्षा का नहीं, कुर्सी की सुरक्षा का है. जाहिर है, मोदीजी को दिख रहा होगा कि पुलवामा और बालाकोट के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा का उफान उतर गया है. कांग्रेस की न्यूनतम आय गारंटी योजना की घोषणा के बाद चुनावी चर्चा फिर बुनियादी मुद्दों की ओर मुड़ रही है.



उधर रोजगार का सवाल भी दबाये नहीं दब रहा है. किसानों को इस बार भी सरसों और चने की फसल का सही दाम नहीं मिल रहा है. गन्ने के किसान का बकाया अभी बाकी है. ऐसे में जनता का ध्यान मोड़ने की एक और कोशिश की जरूरत महसूस हुई होगी. हो सकता है चुनाव से पहले ऐसा ही एक और धमाका भी हो जाये!



मजे की बात यह है कि न्यूनतम आय की गारंटी का तीर चलानेवाली कांग्रेस को खुद पता नहीं है कि उसने क्या घोषणा की है! पहले दिन राहुल गांधी ने कहा कि जिस भी परिवार की ₹12,000 प्रति माह से कम आय है, उसे बकाया राशि की भरपाई की जायेगी. अगले दिन कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि अलग-अलग परिवारों को अलग-अलग राशि की भरपाई नहीं होगी, बस सबसे गरीब पांच करोड़ परिवारों को सीधे हर महीने ₹6,000 दिया जायेगा.



पहले कांग्रेस के प्रवक्ता ने इशारा किया कि इस योजना को लागू करने के लिए गरीबी उन्मूलन की कुछ अन्य योजनाओं में कटौती की जा सकती है. अगले दिन कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि गरीबों के कल्याण के लिए चल रही योजनाओं जैसे सस्ता राशन, मनरेगा, आंगनवाड़ी और प्रधानमंत्री आवास योजना में कोई कटौती नहीं की जायेगी.



कांग्रेस यह भी नहीं बता पायी है कि इस योजना के लिए पैसा कहां से आयेगा. जाहिर है, इतने बड़े खर्चे के लिए कहीं ना कहीं टैक्स बढ़ाना पड़ेगा, लेकिन कांग्रेस इस सवाल से मुंह चुरा रही है. यूं भी 'गरीबी हटाओ' के नारे की हकीकत सारा देश जानता है.



भाजपा की स्थिति सांप-छछुंदर जैसी हो गयी है. ना निगलते बन रहा ना उगलते बन रहा. एक तरफ भाजपा के प्रवक्ता कहते हैं कि यह योजना तो हमारे समय में अरविंद सुब्रमण्यन ने सुझायी थी, कांग्रेस चोरी कर रही है. अगर यह सच है, तो सवाल उठता है कि भाजपा ने इसे लागू क्यों नहीं किया? फिर वे कहते हैं कि यह योजना तो गरीबों को भीख देनेवाली है, उन्हें कामचोर बनायेगी.



अगर ऐसा है, तो भाजपा ने हर किसान परिवार को सालाना 6,000 रुपये देने की योजना की घोषणा क्यों की थी? फिर वे कहते हैं कि ऐसी योजना में गरीबों की पहचान कैसे होगी? यह आपत्ति दर्ज करते समय भाजपा प्रवक्ता भूल जाते हैं कि उनकी सरकार ने ही आयुष्मान भारत योजना घोषित की है, जिसमें 10 करोड़ गरीब परिवारों को चिह्नित करने का प्रावधान है. अगर उस योजना में गरीबों को चिह्नित किया जा सकता है, तो इस योजना में क्यों नहीं?



भाजपा की परेशानी का आलम यह है कि उसने सभी आचार संहिता और मर्यादा को ताक पर रखते हुए सरकारी अर्थशास्त्रियों को कांग्रेस के खिलाफ उतारना शुरू किया है.



योजना आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार टीवी पर आकर कांग्रेस की घोषणा का मजाक बना रहे हैं. सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सानयाल कांग्रेस के कार्यक्रम में छेद गिना रहे हैं. किसी भी सरकारी अफसर की मर्यादा और चुनाव की आचार संहिता के हिसाब से उन्हें किसी राजनीतिक दस्तावेज या घोषणा पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है.



दरअसल, नोटबंदी के बाद से ही कोई भी समझदार अर्थशास्त्री भाजपा के साथ खड़ा होने के लिए तैयार नहीं है, इसलिए अब उसे सरकारी अफसरों का सहारा लेना पड़ रहा है. ये अर्थशास्त्री वित्तीय घाटे की दुहाई दे रहे हैं. सच यह है कि इस साल के बजट में भाजपा ने भी ठीक वही काम किया है, जिसका आरोप वह कांग्रेस पर लगा रही है.



राहुल गांधी की इस घोषणा से गरीबी पर सर्जिकल स्ट्राइक हो न हो, चुनाव की चर्चा ठीक दिशा में मुड़ गयी है. दिल्ली दरबार के सत्ता के खेल और टीवी चैनलों की टीआरपी की दौड़ के बीच अचानक एक फटेहाल गरीब खड़ा हो गया है.



राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल जो बालाकोट के बाद बड़े सवाल की तरह उभरा था, वह अब मिसाइल परीक्षण के बाद काठ की हांडी जैसा लगने लगा है. लोग पूछने लगे हैं कि अब राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अगला खेल क्या खेला जायेगा. दो हफ्ते पहले तक जो चुनाव एकतरफा दिख रहा था, वह अचानक खुलने लगा है.


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