बसंत बहार, प्यार भरे ठुमका : बलिया के शिक्षक की यह कविता आपको कर देगी बसंत-बसंत
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उपायन
विवश हुआ मन, देख दृश्य
अमन चैन निहार निहारूं
रंग ऊपर है रंगों का पहरा
हरे रंग आंचल हाथ कंगना।
मंजर डाल, मतवाला अमरबेल
झंझावात दूर झरने का पानी
अद्भुत बना यह माह सुहाना
पार नदी कोयल किलकारी
सरसों फू्ल प्राकृतिक झुमका
पात गिरे, कलियों का आना
बसंत बहार, प्यार भरे ठुमका।
गोंद सजाये, होरिल ललना
महका सदन रमणीक कंगना
मास पठाय हुआ दूर बवंडर
मन प्रफुल्लित समय उद्वेलित
बन-बाग चहुदिश अभिनन्दन।
होरिल : नवजात शिशु
ललना : सुन्दर स्त्री
R.kant, शिक्षक, बलिया
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