बलिया : गंगा की गोद से निकले स्वामी हरेराम ब्रम्हचारी, त्रिकालज्ञ का दर्शन पाकर खुश हुए लोग

बलिया : गंगा की गोद से निकले स्वामी हरेराम ब्रम्हचारी, त्रिकालज्ञ का दर्शन पाकर खुश हुए लोग


बलिया। त्रिकालदर्शी स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी (swami Hareram Brahmachari) की प्रतिमा को सुघरछपरा गांव के लोगों ने अथक परिश्रम कर गंगा नदी से बाहर निकालकर सुरक्षित कर लिया। ग्रामीणों ने इस दौरान भी सोशल डिस्टेंस का ख्याल रखा। स्वामी जी की मूर्ति जैसे ही गंगा के आंचल से बाहर आई, हर-हर महादेव व स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी का जयकारा गूंजने लगा। गंगा की गोद से निकली मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराया गया।

सबसे आश्चर्य करने वाली बात यह है कि गंगा की लहरों में विलीन स्वामी जी की मूर्ति पर खरोच तक नहीं आयी है। मूर्ति जिस प्रकार स्मृति स्थल पर स्थापित की गई थी, ठीक वैसी ही है। ग्राम प्रधान विजय कांत पांडे ने बताया कि स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी की मूर्ति गंगा नदी से निकाली गई है। ग्राम सभा के लोगों से विचार-विमर्श के बाद मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कराकर पुनः स्मृति स्थल बनाया जाएगा, ताकि स्वामी जी की कृपा बनी रहे।

गंगा नदी से बाहर लाने के बाद मूर्ति पर कहीं खरोच न देख ग्रामीण काफी खुश है। लोगों का कहना है कि जैसे बिहार के छपरा जिले के सिसवन में स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी की कुटिया के समीप सरजू नदी पहुंचकर लौट गई थी और उनका समाधि स्थल सुरक्षित बच गया था। वैसे ही गंगा की लहरों में मूर्ति जमींदोज होने के बाद भी कहीं पर टूटी फूटी नहीं है, यह सब स्वामी जी की  कृपा ही है।




स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी का संक्षिप्त जीवन परिचय

स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी यह एक ऐसा नाम है, जो लोगों की जुबां पर हमेशा तैरता रहता है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मचारी जी का स्मरण जो भी तन्मयता से करता है, उसकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है। स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी का मंदिर गंगा नदी के उस पार नौरंगा में भी अवस्थित है, जहां पर समय-समय पर श्रद्धालु भजन कीर्तन में जुटे रहते हैं। वही, जन्मभूमि सुघरछपरा गांव से सटे केहरपुर में भी स्वामी जी का स्मृति स्थल था, जो वर्ष 2019 की बाढ़ में गंगा की गोद में समा गया।

1840 चैत्र शुक्ल पक्ष रामनवमी को बलिया जिले की बैरिया तहसील क्षेत्र के सुघरछपरा गांव निवासी रविंद्र नाथ पांडे की धर्मपत्नी शकुंतला देवी की गोद में स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी अवतरित हुए। बाल्यावस्था से ही उनका तेज उजागर होने लगा। 5 वर्ष की उम्र में जब उनका मुंडन संस्कार गंगा जी के तट पर हो रहा था तो आप अपनी मां की गोद में बैठे थे। सभी लोग नौका पर सवार होकर उस पर चले गये थे। इसी बीच ब्रह्मचारी जी अपनी मां की गोद से उठकर गंगा किनारे ही ध्यानमग्न हो गए। लोगों ने उन्हें किसी तरह ध्यान से विमुख किया, फिर घर पहुंचे। लेकिन उनका मन इस दुनिया से अलग रहने लगा।

आप बाल्यावस्था से ही गायत्री की उपासना करने लगे। 12 वर्षों तक तुलसी के पत्तों का सेवन कर गायत्री का पुरश्चरण पूरा किया, जिसके फलस्वरूप सिद्धियां प्राप्त हुई और आप त्रिकालज्ञ हो गये। आश्चर्यजनक कार्य व दीन दु:खियों की  मदद में स्वामी जी काफी ख्यातिलब्ध हो गये। यहां तक कि क्षेत्र के किसी भी मामले को कोर्ट में नहीं जाने देते थे। आप स्वयं ही उसका निवारण कर देते थे। इसकी शिकायत अंग्रेजी शासकों को मिली तो उन्होंने वस्तु स्थिति की जांच कराते हुए आपको जिला बदर कर दिया। आप उसे सहर्ष स्वीकार करते हुए बिहार प्रांत के गंगपुर (सिसवन) में अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे। लोगों का कल्याण करते हुए पौष अमावस्या 1928 को आप ने अपना पार्थिव शरीर छोड़ दिया, लेकिन जनमानस के हृदय में आज भी स्वामी जी विद्यमान है। 


भोला प्रसाद
9935081868


Post Comments

Comments

Latest News

मां थी शिक्षामित्र, असिस्टेंट प्रोफेसर बन बेटी ने बढ़ाया घर-परिवार का मान मां थी शिक्षामित्र, असिस्टेंट प्रोफेसर बन बेटी ने बढ़ाया घर-परिवार का मान
UP News : गोण्डा जिले के बेलसर क्षेत्र के निवासी राम कुमार सिंह की पुत्री साध्वी सिंह ने असिस्टेंट प्रोफेसर...
अधिवक्ता चैम्बर, अधिवक्ता भवन और जलपान गृह में स्थित हॉल में स्थान आवंटन के लिए करें आवेदन 
Ballia News : दो पक्षों में खूनी संघर्ष, आधा दर्जन से अधिक रेफर
महारानी संग बलिया पहुंचे हथुआ नरेश, जंगली बाबा का दर्शन पूजन कर लिया आशीर्वाद
Ballia News : वाराणसी छपरा पैसेंजर ट्रेन में जीआरपी ने पकड़ी कारतूस की बड़ी खेप, हिरासत में युवती
Ballia News : रोड एक्सीडेंट में शिक्षक नेता घायल, स्कूल जाते समय हुआ हादसा
68वें राज्य स्तरीय विद्यालयीय खेलकूद प्रतियोगिता : बलिया के बच्चों ने योगासन में आजमगढ़ मण्डल को किया और मजबूत