राष्ट्रीय स्तर के खेल पदाधिकारियों की गलती का खामियाजा, भुगत रहे ख़िलाड़ी !
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नई दिल्ली। स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री ऑफ इंडिया ने देश के सभी नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशंस (NSF) की सालाना मान्यता वापस ले ली। मिनिस्ट्री ने यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद लिया। यह आदेश फेडरेशंस को चलाने के तौर-तरीकों से जुड़े एक कोर्ट केस में आया था।
इससे पहले, इसी महीने मिनिस्ट्री ने फेडरेशंस की मान्यता 30 सितंबर 2020 तक बढ़ाई थी। अब उन्हें उस आदेश को वापस लेना पड़ा है। स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री के डिप्टी सेक्रेटरी SPS तोमर ने सभी 54 फेडरेशंस को एक चिट्ठी लिखकर बताया कि, ‘माननीय दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा 24 जून, 2020 को दिए गए ऑर्डर को ध्यान में रखते हुए डिपार्टमेंट द्वारा 02 जून, 2020 को लिखी गई चिट्ठी, जिसमें प्रोविजनल सालाना मान्यता दी गई थी, उसे वापस लिया जाता है।’
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री के एक सोर्स ने बताया कि मिनिस्ट्री अब कोर्ट में एक नई अप्लिकेशन फाइल कर इस मामले को जल्दी से जल्दी सॉल्व करने की कोशिश करेगी।
आरोप क्या हैं ?
फेडरेशंस को सालाना मान्यता हर साल जनवरी में मिलती थी, लेकिन इस बार यह प्रोसेस में ज्यादा वक्त लगा। फेडरेशंस, मिनिस्ट्री द्वारा मांगी गई कुछ डीटेल्स वक्त पर नहीं दे पाईं। यह सब खत्म होते-होते देश में कोरोना के मामले बढ़ने लगे और सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया. इस बारे में एक सोर्स ने कहा, ‘काम आसानी से चलता रहे, इसके लिए मिनिस्ट्री ने प्रोविजनल मान्यता को सितंबर तक के लिए बढ़ा दिया था।’
इस बारे में कोर्ट तक जाने वाले वकील और एक्टिविस्ट राहुल मेहरा ने कहा कि फेडरेशंस को प्रोविजनल मान्यता देने की प्रोसेस ‘स्पोर्ट्स कोड का उल्लंघन’ थी। उन्होंने कहा, ‘इंडियन ओलंपिक असोसिएशन (IOA) तमाम स्पोर्ट्स फेडरेशंस को अमान्य घोषित कर वहां एक अलग फेडरेशन बनाने की कोशिश में था। IOA के काम करने का तरीका कुछ ऐसा है- वे किसी खेल की इंटरनेशनल फेडरेशन को चिट्ठी लिखते हैं, कुछ विवाद बताते हैं और फिर उसी के दम पर वे उस खेल की नई फेडरेशन बनाने की मांग कर देते थे। ये सब कम से कम पांच बार दोहराया गया।
मिनिस्ट्री भी उन्हें नहीं रोक रही थी। जब मैंने यह कोर्ट के संज्ञान में लाया, कोर्ट ने एक आदेश सुनाया, जिसके एक पैराग्राफ के मुताबिक, मिनिस्ट्री और IOA को NSF के जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले, उन्हें कागजात कोर्ट में पेश करने होंगे और फिर कोई फैसला होगा। मिनिस्ट्री को इसी आदेश के चलते मान्यता का आदेश वापस लेना पड़ा क्योंकि यह कोर्ट को बताए बिना किया गया था।’
IOA का पक्ष
एक्सप्रेस ने इस मसले पर IOA प्रेसिडेंट नरिंदर बत्रा से भी बात की। बत्रा ने IOA द्वारा कुछ भी ग़लत करने की बातों से इनकार किया। उन्होंने कहा, ‘मैं तो गुड गवर्नेंस का पक्षधर हूं। सरकार ने किसी भी फेडरेशन को एक भी पैसा नहीं दिया। सारी फंडिंग सीधे लोगों के खातों में गई है। हमें बताइए कहां गवर्नेंस का मसला है।’
बत्रा ने यह भी कहा कि IOA को चिंता है कि इसे इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी द्वारा ‘दखल’ के रूप में देखा जा सकता है, जो कि उनके चार्टर का उल्लंघन होगा। बत्रा ने कहा, ‘हम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करेंगे, उसका आदर करेंगे. लेकिन मुझे सिर्फ इस बात का डर है कि कहीं इसके चलते IOC हमें सस्पेंड ना कर दे. अगर आपको हर चीज के लिए परमिशन लेनी होगी, तो स्वायत्तता बचेगी ही नहीं। साल 2012 में जब IOC ने IOA को सस्पेंड किया था, तो दिए गए कारणों में IOA के कामकाज में दखल भी शामिल था।’
आदेश का असर
आम दिनों में यह फैसला भारत के ओलंपिक स्पोर्ट्स और एथलीट्स के लिए काफी परेशानी खड़ी कर देता. सरकार नेशनल कैंप और इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स के लिए फंड और परमिशन सिर्फ उन्हीं स्पोर्ट्स फेडरेशंस को देती है, जिन्हें मान्यता प्राप्त है.
कोरोना वायरस महामारी के चलते वेटलिफ्टिंग और एथलेटिक्स के अलावा अभी कोई और नेशनल कैंप लगा नहीं है और ना ही कोई टूर्नामेंट चल रहा है. यह अलग बात है कि इस फैसले के बाद अब वापसी की कोशिशों में लगी फेडरेशंस को झटका लगेगा.
इस बारे में एक ऑफिशल ने कहा, ‘हमने जुलाई से नेशनल कैंप शुरू करने का अपना प्लान स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री के साथ शेयर किया था। हालांकि, अब हमें नहीं पता कि हम उसके लिए फंड पाने के योग्य रहेंगे या नहीं।'
नियम क्या हैं
नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट कोड ऑफ इंडिया, 2011 के क्लॉज 8 के मुताबिक- ‘इस कोड का मकसद यह तय करना है कि NSF अपने आंतरिक कार्यों में कुछ बेसिक स्टैंडर्ड, मानदंड और प्रक्रियाएं बरकरार रखें, जो संबंधित इंटरनेशनल फेडरेशन द्वारा तय किए गए ऊंचे सिद्धांतों और उद्देश्यों के अनुरूप हों। साथ ही वे ओलंपिक चार्टर या फिर भारतीय ओलंपिक असोसिएशन (IOA) के संविधान और सरकार द्वारा NSF के लिए तय की गई गाइडलाइंस के अनुरूप हों।’
दिसंबर 2009 से इस नियम के तहत सालाना मान्यता का सिस्टम शुरू किया गया था। यह मान्यता कुछ तय किए गए डॉक्यूमेंट जमा करने पर हर साल अपने आप रिन्यू होती है। इन डॉक्यूमेंट्स में सालाना रिपोर्ट, अकाउंड ऑडिट, नेशनल चैंपियनशिप कराने की डिटेल्स, सरकारी मदद को खर्च करने के सबूत इत्यादि होते हैं। इस रिन्यूअल के बाद ही संस्थाएं सरकारी फंड पाने के योग्य होती हैं. साथ ही उन्हें ट्रेनिंग और कंपिटीशन में भी सहयोग मिलता है। मान्यता न मिलने के हालात में यह मदद रुकती तो नहीं, लेकिन इसे पाने में दिक्कतें जरूर बढ़ जाती हैं।
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