महाराज सुहेलदेव जयंती : बलिया के इस साहित्यकार ने उठाया बड़ा सवाल

महाराज सुहेलदेव जयंती : बलिया के इस साहित्यकार ने उठाया बड़ा सवाल


बलिया। 'वसन्त पंचमी' पर देश मध्यकाल के महान योद्धा, कुशल संगठनकर्ता एवं स्वाभिमानी शासक महाराज सुहेलदेव की जयंती मना रहा है। कुछ लोगों को भले ही इसके पीछे वोट-बैंक की राजनीति नज़र आए, अधिकांश भारतीय इसे अपने उपेक्षित सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना के प्रयास के रूप में देखते हुए पुलकित होंगे।
राजा सुहेलदेव ग्यारहवीं शताब्दी में श्रावस्ती के शासक थे। उन्होंने, अन्य हिन्दू राजाओं के सहयोग से सन् 1034 ईस्वी में कुख्यात आक्रमणकारी महमूद गज़नवी के भतीजे सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को एक लंबी लड़ाई में बुरी तरह से परास्त कर दिया। बहराइच में हुई उक्त लड़ाई में नौजवान ग़ाज़ी भी मारा गया था। उसके दंभ को चूर-चूर  करने के पूर्व मां भारती के इस सपूत ने उसके बाप सैयद सालार साहू ग़ाज़ी को भी धूल चटा दी थी। आगे चलकर यह महान घटना ही जन-मानस में सुहेलदेव के अमर हो जाने का कारण बनी। परन्तु पाठकों को यह जानकर अफ़सोस होगा कि तत्कालीन परिस्थितियों के प्रभाव में उत्तर भारत के इस परम पराक्रमी लड़ाके तथा उसके गौरवशाली कारनामों को जानबूझकर नेपथ्य में ढकेल दिया गया। संभवतः जुल्मो-सितम के बल पर भारत-भूमि का मान मर्दन करने का अभियान चलाने वालों को लगा होगा कि उक्त घटना कहीं आपसी वैमनस्य के शिकार हिंदू राजाओं को एकजुट न कर दे और इस भू-भाग पर वर्चस्व कायम करने का उनका सपना अधूरा न रह जाए। अखण्ड भारत आभारी है सत्रहवीं शताब्दी के फारसी लेखक अब्द-उर-रहमान चिश्ती की कृति 'मिरात-ए-मसूदी' तथा अन्य लोक-कवियों, गायकों, संस्कृति-कर्मियों तथा कुछ सनातनी संस्थाओं का जिनकी वज़ह से विधर्मियों के सुनियोजित षड्यंत्रों के बावजूद महाराज सुहेलदेव के अभूतपूर्व पराक्रम एवं सामरिक क्षमताओं की गाथा, आधी-अधूरी ही सही, आज हमारी आंखों के समक्ष अपनी आन-बान-शान के साथ दमक रही है। अंत में, उस महानायक को बारम्बार नमन करते हुए मैं चाहता हूं कि वर्तमान पीढ़ी इतिहास से यह सवाल जरूर पूछे कि सुहेलदेव को उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अनुरूप सम्मान देने में स्वाधीन भारत के शासकों को इतनी देर क्यों लगी? पूछा तो यह भी जाना चाहिए कि एक मजहबी आक्रमणकारी और लुटेरे सैयद सालार मसूद राज़ी को बहराइच में उसकी मौत के बाद आखिर किस योजना के तहत पीर-दरदेश घोषित किया गया था तथा वहां उसकी दरगाह बनवाकर उसे एक तीर्थ स्थल का दर्जा दिया गया।

शशि कुमार सिंह 'प्रेमदेव', शिक्षक एवं साहित्यकार
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।)

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