सामाजिक न्याय दिवस : बलिया के न्यायिक सदस्य राजू सिंह ने दी 'खास' जानकारी
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बलिया। बच्चों के साथ अन्याय न हों। बच्चों का शोषण न हों। उन्हें समुचित न्याय मिले। इसको लेकर सशक्त कानून बना है, जिसका प्रभावी क्रियान्वयन वैधानिक निकाय कर रहा है। कोई बच्चा बाल मजदूरी, बाल विवाह, बाल दुर्व्यवहार, बाल यौन शौषण या अन्य किसी कठिन परिस्थितियों में पाया जाता है तो उसे न्याय दिलाने के लिए किशोर न्याय अधिनियम की धारा 27 की उपधारा (1) के तहत जिले में न्यायपीठ बाल कल्याण समिति है। समिति में एक अध्यक्ष व चार सदस्य होते है, जिसमें एक महिला सदस्य है।
न्यायपीठ बाल कल्याण समिति बलिया के न्यायिक सदस्य राजू सिंह ने purvanchal24.com से बताया कि जिले में स्थापित न्यायपीठ परिवार से बिछड़े, घर से भागे या माता-पिता द्बारा परित्यक्त बच्चों के तारणहार के रूप मे कार्य कर रही है। किशोर न्याय अधिनियम के तहत न्यायपीठ हर महीने दर्जन भर लावारिस बच्चों को नया जीवन दे रही है। बिछड़े बच्चों को उनके परिवार से मिला रही है। यहां न सिर्फ बच्चों का जीवन संवर रहा है, बल्कि परिवार उजड़ने से भी बच रहा है। आये दिन नवजात बच्चे लावारिस हालत में मिलते रहते हैं, जिन्हें पुलिस व चाइल्ड लाइन न्यायपीठ बाल कल्याण समिति के सामने प्रस्तुत करती है।
अभिभावक मिल गये तो उन्हें बुलाकर कागजी कार्रवाई के बाद बच्चों को सौंप दिया जाता हैं, अन्यथा उन्हें शिशुगृह या बालगृह के सरक्षण में दे दिया जाता है। अभिभावक अपने बच्चे को प्राप्त करना चाहते है तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी होती है। अगर कोई व्यक्ति बच्चा गोद लेना चाहता है तो केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण की साइट पर आनलाइन आवेदन कर बच्चा गोद ले सकते है। न्यायिक सदस्य राजू सिंह ने बताया कि जनवरी 2017 से आज तक 603 मामले न्यायपीठ द्बारा निपटाये जा चुके है। हर महीने 15 से 20 बच्चे विभिन्न माध्यमों से प्रस्तुत किए जाते है।
न्यायपीठ बाल कल्याण समिति बलिया के न्यायिक सदस्य राजू सिंह ने purvanchal24.com से बताया कि जिले में स्थापित न्यायपीठ परिवार से बिछड़े, घर से भागे या माता-पिता द्बारा परित्यक्त बच्चों के तारणहार के रूप मे कार्य कर रही है। किशोर न्याय अधिनियम के तहत न्यायपीठ हर महीने दर्जन भर लावारिस बच्चों को नया जीवन दे रही है। बिछड़े बच्चों को उनके परिवार से मिला रही है। यहां न सिर्फ बच्चों का जीवन संवर रहा है, बल्कि परिवार उजड़ने से भी बच रहा है। आये दिन नवजात बच्चे लावारिस हालत में मिलते रहते हैं, जिन्हें पुलिस व चाइल्ड लाइन न्यायपीठ बाल कल्याण समिति के सामने प्रस्तुत करती है।
अभिभावक मिल गये तो उन्हें बुलाकर कागजी कार्रवाई के बाद बच्चों को सौंप दिया जाता हैं, अन्यथा उन्हें शिशुगृह या बालगृह के सरक्षण में दे दिया जाता है। अभिभावक अपने बच्चे को प्राप्त करना चाहते है तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी होती है। अगर कोई व्यक्ति बच्चा गोद लेना चाहता है तो केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण की साइट पर आनलाइन आवेदन कर बच्चा गोद ले सकते है। न्यायिक सदस्य राजू सिंह ने बताया कि जनवरी 2017 से आज तक 603 मामले न्यायपीठ द्बारा निपटाये जा चुके है। हर महीने 15 से 20 बच्चे विभिन्न माध्यमों से प्रस्तुत किए जाते है।
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