बलिया में कुछ यूं ताजा हुई भोजपुरी के शेक्सपियर की यादें
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बलिया। अपने जीवन काल में ही भिखारी ठाकुर लीजेंड बन चुके थे। उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से न सिर्फ सामाजिक कुरीतियों और विडम्बनाओं पर कुठाराघात किया, बल्कि समाज को एक नई दिशा भी दी। भिखारी ठाकुर भोजपुरी साहित्य, कला और संस्कृति के सच्चे उन्नायक थे। उक्त बातें जनपद के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जनार्दन राय ने भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि पर आयोजित विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहीं।
संकल्प साहित्यिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था बलिया द्वारा मिश्र नेवरी स्थित कार्यालय पर आयोजित गोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए संकल्प के सचिव रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी ने कहा कि भिखारी ठाकुर एक सांस्कृतिक योद्धा थे। उन्होंने समाज मे परिवर्तन लाने के लिये रंगमंच का सहारा लिया। उनके नाटकों का असर समाज पर बहुत ही गहरे स्तर पर पड़ता था। अपनी कला को चर्मोत्कर्ष पर ले जाकर सामाजिक विडम्बनाओं को बड़े ही सहज और सरल तरीके से अभिव्यक्त करने का हुनर था। भिखारी ठाकुर कालजयी रचनाकार थे। भिखारी ठाकुर की रचनाधर्मिता और उनकी कला आज भी रंगकर्मियों के लिए एक चुनौती है। पण्डित ब्रजकिशोर त्रिवेदी ने कहा कि भिखारी ठाकुर कबीर की परम्परा के कलाकार थे। उनके अंदर कबीर जैसी आध्यात्मिक दृष्टि थी। विनोद विमल ने कहा कि भिखारी ठाकुर आज पहले से ज्यादे प्रासंगिक हो गए हैं। रमाशंकर तिवारी ने कहा कि भिखारी ठाकुर जैसे कलाकार युगों में पैदा होते हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत में संगीत प्रशिक्षक विजय प्रकाश पाण्डेय ने भिखारी ठाकुर के बिदेशिया नाटक का गीत 'करिके गवनवा, भवनवा में छोड़ि कर, अपने परईलन पुरूबवा बलमुआ-अंखिया से दिन भर, गिरे लोर ढर ढर, बटिया जोहत दिन बितेला बलमुआ' सुनाया। रंगकर्मी आनन्द कुमार चौहान, ट्विकंल गुप्ता, मुकेश, सोनू ने उनका मशहूर गीत 'पियवा गईले कलकतव ए सजनी' सुनाया। इस अवसर पर तारकेश्वर पासवान, सोनू, अजीत, संस्कृति, प्रकृति, अंकिता इत्यादि दर्जनों ऱगकर्मी उपस्थित रहे। संचालन अचिन्त्य त्रिपाठी ने किया।
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