आचार्य डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्मदिन हिन्दी जगत का आलोक पर्व

आचार्य डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्मदिन हिन्दी जगत का आलोक पर्व


बलिया। विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के वरदपुत्र एवं आचार्य की गरिमा से दीप्त आचार्य पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी का व्यक्तित्व और उनकी सर्जनात्मक क्षमता किसी को भी चमत्कृत और अभिभूत करने के लिए पर्याप्त है। पाण्डित्य की प्रकाण्डता और उनका विपुल साहित्य हिन्दी जगत को गौरवान्वित करने के लिए पर्याप्त है। ओझवलिया की माटी के साथ जनपद की टाटी, माटी व खांटी भोजपुरिया ठसक व अट्ठाहास उनकी बलियाटिक होने की पहचान थी, जो जीवन में अंत तक बनी रही।
उक्त व्यक्तव्य बलिया के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जनार्दन राय ने पद्मभूषण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के पैतृक गांव ओझवलिया में बुधवार को उनकी 114वीं जयंती पर 'आचार्य पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी स्मारक समिति' के संयोजकत्व में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त की। कहा कि हिंदी साहित्य के आकाश पर अपना परचम लहराने वाले बागी बलिया के अद्वितीय लाल पंडित जी को कुशाग्र बुद्धि, उदार ह्रदय और विराट मानवीय चेतना जैसी अमूल्य निधियां पैतृक दाय के रूप में मिली थी। और भी बहुत कुछ मिला था, जिसकी चर्चा बेमानी होगी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के साथ शांति निकेतन में रविन्द्रनाथ ठाकुर का अवदान उनके जीवन की पूंजी थी, जिसके द्वारा उनके आचार्यत्व का सृजन हुआ। पर उसके मूल में महर्षि भृगु का प्रसाद ही था, जिस पर हिन्दी जगत की रचनाधर्मिता का भव्य 'प्रासाद' आज भी भारतीय साहित्य को गौरवान्वित करता है।



मुख्य अतिथि बैरिया तहसील के तहसीलदार पं. शिवसागर दुबे ने कहा कि हिन्दी साहित्य-जगत में पूरी दुनिया का पथ-प्रदर्शन करने वाले द्विवेदी जी, ललित निबंधकार, उपन्यासकार, साहित्येतिहासकार, समीक्षक एवं अन्य कई विधाओं के उन्नायक के रूप में उनका शब्द-शरीर आज भी हमें अनुप्राणित कर रहा है।माने तो वे स्वयं में 'कुटज' और 'कबीर' के पुनर्संस्करण थे। साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने के पक्षपाती आचार्य डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म-दिन हिन्दी जगत का आलोक पर्व है। विसंगतियों के बीच कोरोना से लड़ते हुए हम उनकी स्मृति को नमन करते हैं। अभावों के बीच स्वभावत: भाव-भरी श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं।

प्रख्यात साहित्यकार श्रीशचंद्र पाठक ने कहा कि भारतीय मनीषा के प्रतीक एवं कालजयी रचनाकार आचार्य जी को संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, गुजराती, पंजाबी आदि भाषाओं का गहरा ज्ञान था। विचार-प्रवाह, अशोक के फूल, कल्पलता, वाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद्रलेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा, सूर-साहित्य, कबीर, कालीदास का लालित्य योजना, हिंदी साहित्य का आदिकाल, आलोक पर्व आदि उनकी श्रेष्ठ व अद्भूत कृतियां हैं। 'हिंदी साहित्य अकादमी' व पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित पंडित जी बनारस विश्वविद्यालय के 'रेक्टर' व 'उत्तर प्रदेश हिंदी अकादमी' के अध्यक्ष भी रहे।

कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रबुद्धजनों ने आचार्य जी के चित्र पर कुसुमांजलि अर्पित कर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को भावपूर्ण स्मरण करते  हुए नमन किया। इस अवसर पर सत्यनारायण गुप्ता, अक्षयवर मिश्रा, वृजकिशोर दुबे, शिक्षक सोनू दुबे, अवधेश गिरि, उमाशंकर पाण्डेय, दीना चौबे, वीरेंद्र दुबे आदि मौजूद रहे। अध्यक्षता प्रधान विनोद दुबे एवं संचालन करते हुए कार्यक्रम आयोजक आचार्य पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी स्मारक समिति के सचिव सुशील कुमार द्विवेदी ने आभार व्यक्त किया।

Related Posts

Post Comments

Comments

Latest News

सुल्तानपुर में बनेगा कटानरोधी दो ठोकर : केतकी सिंह सुल्तानपुर में बनेगा कटानरोधी दो ठोकर : केतकी सिंह
बलिया : बांसडीह विधायक केतकी सिंह ने रविवार को सरयू नदी से सुल्तानपुर, भोजपुरवा गांव के पास हो रहे कटान...
Ballia News : चालक की मौत मामले में नया मोड़
Ballia News : गंगा नदी में मिला चार दिन से लापता व्यक्ति का शव
Road Accident in Ballia : सड़क हादसे में मां की मौत, मासूम बेटी समेत दो घायल
बलिया में स्थायी लोक अदालत का बड़ा फैसला, दो वादियों को मिला न्याय
भृगु बाबा की धरा पर कार्तिक पूर्णिमा स्नान को लेकर प्रशासन अलर्ट, DM-SP ने किया गंगा घाट का निरीक्षण
प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति को लेकर हाईकोर्ट सख्त, डिजिटल अटेंडेंस सुनिश्चित करें सरकार