बलिया के शिक्षक नेता ने यादों के झरोखों से बचपन को कुछ यूं किया जिन्दा

बलिया के शिक्षक नेता ने यादों के झरोखों से बचपन को कुछ यूं किया जिन्दा

बलिया के शिक्षक नेता ने यादों के झरोखों से बचपन को कुछ यूं किया जिन्दा

                 राधेश्याम सिंह, शिक्षक नेता 

यह भी पढ़े टॉप 7 में बलिया : शत-प्रतिशत रिजल्ट, प्रदेश में मिली सफलता पर बीएसए ने पूरी टीम को दी बधाई

जब हम स्कूल में पढ़ते थे, उस स्कूली दौर में निब पैन का चलन जोरों पर था। तब कैमलिन और सुलेखा की स्याही प्रायः हर घर में मिल ही जाती थी। कोई कोई टिकिया से स्याही बनाकर भी उपयोग करते थे और बुक स्टाल पर शीशी में स्याही भर कर रखी होती थी। 5 पैसा दो और ड्रापर से खुद ही डाल लो, ये भी सिस्टम था। जिन्होंने भी पैन में स्याही डाली होगी, वो ड्रॉपर के महत्व से भली भांति परिचित होंगे। कुछ लोग ड्रापर का उपयोग कान में तेल डालने में भी करते थे। 

यह भी पढ़े Ballia News : चमकीं प्रतिभा, इस पूर्व-माध्यमिक विद्यालय के 7 बच्चों को सरकार चार साल देगी छात्रवृत्ति

महीने में दो-तीन बार निब पैन को खोलकर उसे गरम पानी में डालकर उसकी सर्विसिंग भी की जाती थी।  लगभग सभी को लगता था कि निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है। हर क्लास में एक ऐसा एक्सपर्ट होता था, जो पैन ठीक से नहीं चलने पर ब्लेड लेकर निब के बीच वाले हिस्से में बारिकी से कचरा निकालने का दावा कर लेता था। उसे बड़े गर्व से हम कक्षा का मानीटर कहते थे।

नीचे के हड्डा को घिस कर परफेक्ट करना भी एक आर्ट था। हाथ से निब नहीं निकलती थी तो दांतों के उपयोग से भी निब निकालते थे। दांत, जीभ औऱ होंठ भी नीला होकर भगवान महादेव की तरह हलाहल पिये सा दिखाई पड़ता था। दुकान में नयी निब खरीदने से पहले उसे पैन में लगाकर सेट करना, फिर कागज़ में स्याही की कुछ बूंदे छिड़क कर निब उन गिरी हुयी स्याही की बूंदों पर लगाकर निब की स्याही सोखने की क्षमता नापना ही किसी बड़े साइंटिस्ट वाली फीलिंग दे जाता था। 

निब पैन कभी ना चले तो हम सभी ने हाथ से झटका देने के चक्कर में आजू बाजू वालों पर स्याही जरूर छिड़की होगी। कुछ बच्चे ऐसे भी होते थे, जो पढ़ते लिखते तो कुछ नहीं थे लेकिन घर जाने से पहले उंगलियों में स्याही जरूर लगा लेते थे, बल्कि पैंट पर भी छिड़क लेते थे, ताकि घरवालों को देख के लगे कि बच्चा स्कूल में बहुत मेहनत करता है।

कभी-कभी आपस में झगड़ा भी हो जाता था। पेन के पहले लकड़ी की पटरी, कक्षा गदहियां पार्टी, छोटी पार्टी, बड़ी पार्टी, तब कक्षा-1, 2 में साथ में होती थी तो पटरी भी आपस में चलती थी। उसके बाद गुरु जी बेहाया की छड़ी से स्वागत करते थे। घर भी माता पिता 2-4 थप्पड़ तो लगा ही देते थे। 

भूली हुई यादें और बचपन : जिन्दाबाद जिन्दाबाद

राधेश्याम सिंह
अध्यक्ष
प्राशिसं चिलकहर, बलिया

Related Posts

Post Comments

Comments

Latest News

गर्मी की छुट्टियों में भी खुलेंगे स्कूल, वजह जानकर आप भी करेंगे सरकार की तारीफ गर्मी की छुट्टियों में भी खुलेंगे स्कूल, वजह जानकर आप भी करेंगे सरकार की तारीफ
लखनऊ : परिषदीय विद्यालयों में गर्मियों की छुट्टियों में समर कैंप लगाए जाएंगे। 20 मई से 15 जून के बीच...
Ballia News : महिला की हत्या मामले में कोर्ट का बड़ा फैसला, तीन भाईयों को उम्र कैद
ARP के रूप में कार्यरत शिक्षकों के मामले में हस्तक्षेप से कोर्ट का इनकार, सहायक अध्यापकों की याचिकाएं खारिज
26 March Ka Rashifal : क्या कहते हैं आपके सितारे, पढ़ें आज का राशिफल
भाजपा नेता को इंजेक्शन देकर मारने वाले 6 बदमाश अरेस्ट, यहां जानें पूरा मामला
Ballia News : यूपी-बिहार सीमा पर फसल कटाई को लेकर मारपीट, बलिया के 6 किसानों समेत 10 घायल
Ballia News : अपहृत किशोरी बरामद, रेलवे स्टेशन से युवक गिरफ्तार