बलिया : सुरक्षित उपायों का संकल्प ही एड्स से बचाव का विकल्प
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बलिया। एड्स पर नियंत्रण जागरुकता से ही संभव है। लोगों के दिमाग में यह बात बैठ जानी चाहिए कि इसके होने के कौन-कौन से कारण हैं। इससे बचाव के तरीके क्या हैं। यह बातें एसीएमओ डा. जीपी चौधरी ने कही। विश्व एड्स दिवस के मौके पर नगर से सटे तिखमपुर में मंगलवार को ग्राम प्रधान सत्येंद्र सिंह के आवास पर आयोजित संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि एड्स से बचाव के लिए सामान्य व्यक्ति को एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के वीर्य, योनि स्राव अथवा रक्त के संपर्क में आने से बचना चाहिए। खून को अच्छी तरह जांचकर ही चढ़ाना चाहिए। कई बार बिना जांच के खून मरीज को चढ़ा दिया जाता है जोकि गलत है। इसलिए डॉक्टर को खून चढ़ाने से पहले पता करना चाहिए कि कहीं खून एचआईवी दूषित तो नहीं है। उपयोग की हुई सुइओं या इंजेक्शन का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये एचआईवी संक्रमित हो सकते हैं। दाढ़ी बनवाते समय हमेशा नाई से नया ब्लेड उपयोग करने के लिए कहना चाहिये।
उन्होंने कहा कि एड्स से जुड़ी हुई भ्रांतियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। अगर एक सामान्य व्यक्ति एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के वीर्य, योनि स्राव अथवा रक्त के संपर्क में आता है तो उसे एड्स हो सकता है। आमतौर पर लोग एचआईवी पॉजिटिव होने को एड्स समझ लेते हैं, जो कि गलत है। बल्कि एचआईवी पॉजिटिव होने के 8-10 साल के अंदर जब संक्रमित व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है तब उसे घातक रोग घेर लेते हैं और इस स्थिति को एड्स कहते हैं। उन्होंने कहा कि एचआईवी से संक्रमित लोगों में लम्बे समय तक एड्स के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। लंबे समय तक (3, 6 महीने या अधिक) एचआईवी का भी औषधिक परीक्षण से पता नहीं लग पाता। अधिकतर एड्स के मरीजों को सर्दी, जुकाम या विषाणु बुखार हो जाता है पर इससे एड्स होने का पता नहीं लगाया जा सकता।
एचआईवी वायरस का संक्रमण होने के बाद उसका शरीर में धीरे धीरे फैलना शुरू होता है। जब वायरस का संक्रमण शरीर में अधिक हो जाता है, उस समय बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं। एड्स के लक्षण दिखने में आठ से दस साल का समय भी लग सकता है। इस मौके पर कामेश्वर चैरिटेबल ट्रस्ट के सचिव संतोष तिवारी आदि ने भी विचार रखे। संगोष्ठी में आजीविका मिशन के तहत गठित स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की मौजूदगी उल्लेखनीय रही।
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