बैरिया में यूं ही नहीं मनाया जाता बलिदान दिवस, ये हैं इस विशेष दिन की खास बातें




ऐसे ही नहीं मनाया जाता बैरिया में शहादत दिवस। हमारे पूर्वजों ने 18 अगस्त सन् 1942 को अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ कर फेंक दिया था, और अपने स्वाभिमानी पौरुष के बल पर बैरिया थाने पर तिरंगा फहरा कर अंग्रेज सिपाहियों को खदेड़ दिया था, तब बैरिया थाने पर झंडा फहराने वालों में युवा क्रांतिकारी कौशल किशोर सिंह को अंग्रेजी हुकूमत की गोली का सामना करना पड़ा। आजाद वतन का सपना संजोये सीने पर गोली खाकर कौशल किशोर सिंह अमर शहीद हो गए। वहीं एक-एक कर 19 लोगों ने इस आजादी के शहादत रूपी यज्ञ में अपने प्राण रूपी आहुति देकर देश में सबसे पहले द्वाबा को आजाद करा दिया। इसलिए द्वाबा का इतिहास स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। हमारे पूर्वजों ने जो बलिदान और कुर्बानी समाज देश व भारत माता के लिए दिया है, आज वह कुर्बानी असफल होती दिख रही है।
कलुषित व कुंठित राजनीति के शिकार लोग समाज में नफरत फैलाकर राजनीति की रोटी सकते हुए सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ में लगे हुए हैं। जबकि हमारे पूर्वज जाति-पाति, भेदभाव, अगड़ी, पिछड़ी, उच्च, नीच की परवाह किए बिना सभी लोग एक होकर भारत माता की आजादी के लिए सतत् प्रयासरत थे। इसके लिए उन्होंने अपनी प्राणों की आहुति दे दी और आज का सामाजिक परिदृश्य का सामना करने पर ऐसा लगता है कि उन अमर सपूतों की कुर्बानी व्यर्थ हो जाएगी।
प्रत्येक वर्ष शहीद स्मारक बैरिया पर लोग जुटते हैं। वहां श्रद्धांजलि सभा में शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद शहीदों के सपनों के अनुरूप कार्य करने का संकल्प लेते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं करते। इससे समाज का स्वरूप दिनों दिन बिगड़ता जा रहा है। इसे कौन सुधारेगा ? इसकी जिम्मेदारी किसकी है ? इस यक्ष प्रश्न का जवाब आज ढूंढने से भी नहीं मिल रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो समाज के लिए यह ठीक नहीं होगा। इसे ठीक करने के लिए समाज के सभी लोगों को आगे आना होगा, क्योंकि अमर शहीदों ने एक होकर यही संदेश दिया था कि भले ही हमारे देश में विविध प्रकार की भाषा बोली जाती हो। विविध प्रकार के रूप रंग, वेशभूषा हो, लेकिन हम अनेकता में एकता की परिकल्पना में जीते हैं। इस उदाहरण को आज अपनाने की आवश्यकता है।
अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाला दिन और भी भयानक होगा। इसके लिए युवा पीढ़ी की जिम्मेदारी सर्वाधिक है।सिर्फ अगर युवा पीढ़ी इस पर अमल करना शुरू कर दे तो आने वाले समय में समाज का स्वरूप बदल सकता है। इसके लिए दल पार्टी जात-पाति, उच्च नीच, भेदभाव को छोड़कर राष्ट्रीय एकता और अखंडता को अपनाते हुए सबसे पहले मन में एकता की भाव लानी होगी। एकता दिखानी होगी, जो राष्ट्र के लिए आवश्यक है। अगर ऐसा हुआ तो बगावती तेवर के लिए विश्व विख्यात द्वाबा के वीर अमर सपूतों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
शिवदयाल पांडेय मनन
पत्रकार
बैरिया, बलिया (उत्तर प्रदेश)


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