सियासत में सादगी का धरोहर हो जाना, आसान नहीं है चन्द्रशेखर हो जाना
श्रद्धांजलि विशेष
अकेला हूं तो क्या हुआ?
आबाद कर देता हूं वीराना!
बहुत रोयेगी शामें तन्हाई
मेरे जाने के बाद!!
08 जुलाई का दिन आते ही बलिया के लोगो में एक वीराना सा छा जाता है। लगता है कुछ ऐसा खो गया, जो कभी मिल ही नहीं सकता।
नाम है श्रद्धेय चन्द्रशेखर जी।
लेकिन यादों में हमेशा आते रहेंगे। बलिया की शान और देश के गौरव बनने में सालो खप गये। तब जाकर देश की आवाज बनें। दाढ़ी बाबा के हाथ अगर दाढी को खुजलाई तो देश में भुचाल आ जाया करता था। हमेशा देश में लोकतंत्र के उन्नयन की बात करने वाले भारत को नजदीक से जानने और समझने हेतु पदयात्रा करने वाले युवा तुर्क की 08 जुलाई को 16वीं पुण्यतिथि पर भी लोग उसी जोश और उत्साह से याद करने को बलिया से दिल्ली तक आतुर दिख रहे हैं। कह गया है जीवन लंबा नहीं बड़ा होना चाहिए। श्रद्धेय चन्द्रशेखर जी आपका जीवन इतना बड़ा था कि आने वाली पीढ़ियों के आप आदर्श बने रहेंगे।
17 अप्रैल 1927 ई को बलिया जिले के इब्राहिम पट्टी गांव में कृषक परिवार में पैदा हुए, जिस कारण गांव, गिरांव खेती किसानी और अभाव की जिंदगी से ज्यादा परिचित थे। हमेशा सदन से किसानों के उन्नयन हेतु योजनाओं के क्रियान्वयन की बात कहा करते थे। छात्र जीवन से ही आप फायर ब्रांड नेता थे। आपका हमेशा सकारात्मक सोच देश के उन्नयन हेतु केंद्रित रहा करता था। राजनैतिक जीवन बहुत ही उठा पटक भरा रहा। 10 नवंबर 1990 को आठवें प्रधानमंत्री के रुप में आप जैसा महान शख़्सियत देश को मिला।
शपथ लेते ही प्रधानमंत्री की कुर्सी अपने आपको गौरवान्वित महसूस की। अल्प कार्यकाल में बहुत जटिल समस्याएं हल होती नजर आई। आपका छोटा कार्यकाल भारतवासियों को कचोटकर रह गया। ज्वलंत मुद्दों को चुटकी में हल कर देने वाले युवा तुर्क, जननायक को 08 जुलाई 2007 का दिन हमलोगों से दूर कर दिया और दुनिया में अमर हो गये। ऐसे विचारक को 16वीं पुण्यतिथि पर उनकी स्मृतियों को सादर नमन।
सियासत में सादगी का धरोहर हो जाना,
आसान नहीं है चन्द्रशेखर हो जाना।
विनम्र श्रद्धांजलि
उपेन्द्र सिंह, सचिव
राष्ट्रनायक चन्द्रशेखर मैराथन एवं विकास समिति बलिया।
(RNCMVS)
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