तिरुपति बालाजी : प्रभु दर्शन और बलिया टीम की यात्रा का रोमांचक अनुभव
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श्री वेंकटेश्वर मन्दिर भारत के सबसे प्रसिद्ध प्रमुख मंदिरों और तीर्थ स्थलों में से एक हैं। तिरुमला की पहाड़ियों पर पुष्करणी तालाब के किनारे स्थित भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में सात पहाड़ियों के ऊपर तिरुमला में बिराजमान विष्णु स्वरूप भगवान वेंकटेश्वर का भव्य, दिव्य और अद्भुत मंदिर तिरुपति बालाजी मंदिर (Tirupati Balaji Temple) वैसा तीर्थस्थल है, जहां प्रभु दर्शन के साथ ही प्रकृति के मनमोहक और अविस्मरणीय नजारे भी देखने को मिलते है। भगवान वेंकटेश्वर का दर्शन और आस पास मौजूद प्राकृतिक परिवेश से जहां मन को एक अलग तरह की संतुष्टि, शांति और सकारात्मकता मिलती है, वही ठंडी और ताज़ी हवा तन को ख़ुशी से सराबोर कर देती है। ऐसी अनुभूति भारत दर्शन टीम के सभी सदस्यों ने किया है।
भृगु बाबा का जयकारा और तिरूपति बाला जी की यात्रा शुरू
हमारी 'भारत दर्शन टीम' की बुनियाद हमारे शिक्षक साथी शिवप्रकाश तिवारी और बड़े भाई अजय पांडेय ने सबसे पहले रखी थी, जिसमें बड़े भाई शशिकांत ओझा, बृजभूषण पांडेय नेताजी, सतीश चंद्र पांडेय, हरेकृष्ण यादव, अजय पांडेय 2, अनिल पांडेय, जितेन्द्र सिंह, संजय कुमार वर्मा, दिलीप श्रीवास्तव के साथ मैं भी एक सदस्य हूं। हर साल की भांति इस साल टीम ने तिरुपति बालाजी, गोल्डेन टेम्पल बेल्लूर और श्रीशैलम् का प्लान प्रभु की कृपा से बनाया था। हम सभी एक जनवरी 2024 को रात्रि 10 बजे बलिया स्टेशन से गंगा कावेरी एक्सप्रेस पर 'भृगु बाबा' का जयकारा लगाकर सवार हुए और 3 जनवरी को गुडुर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गये। वहां से आटो बुक कर बस स्टैंड पहुंचे, जहां से तिरुपति की बस मिली। करीब सवा तीन घंटे बाद भारत दर्शन टीम तिरुपति पहुंच गई। वहां टीम के सदस्य राकेश तिवारी पुणे से पहुंच चुके थे। हमारी 13 सदस्यीय टीम श्रीनिवासम् (बस स्टैंड तिरूपति से नजदीक) पहुंची और भगवान वेंकटेश के दर्शन को सर्वदर्शनम् श्रेणी में निःशुल्क टिकट ली। प्रभु कृपा से हम सभी को ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 3 बजे) में दर्शन का स्लॉट मिला।
फिर हम सभी तिरूपति बस स्टेशन से सात पहाड़ों के ऊपर (तिरुमला) में स्थित भगवान वेंकटेश्वर (तिरूपति बाला जी) मंदिर के लिए बस पर सवार हुए। कुछ दूर जाने के बाद चालक ने चेक प्वाइंट पर बस रोककर टिकट लेने को कहा। बस में सवार सभी यात्रियों ने काउंटर से टिकट लिया और बस गंतव्य की ओर चल पड़ी। फिर चेक प्वाइंट पर बस रूकी और अपना सभी लगेज लेकर हम सभी नीचे उतरे और जांच कराये। इस प्वाइंट पर जांच के बाद बस चली तो तिरुमला में ही रूकी।
करीब एक घंटे से ज्यादा इधर उधर टहलने के बाद हम सभी कल्याण कट्टा (जहां मुंडन होता है) में मुंडन करवाने चले गए। यहां जाते ही हमें एक स्लिप और आधा ब्लेड निःशुल्क दिया गया। स्लिप पर सीट की संख्या लिखी हुई थी। आपका मुंडन वही होगा, जो संख्या स्लिप पर लिखी हुई थी। अंदर गया तो बड़े हॉल में मुंडन कर्मचारी बैठे हुए थे और मुंडन करवाने वाले की भीड़ लगी हुई थी। बारी आने पर हम सबने मुंडन करवाया। इस बीच, हम लोगों का कमरा बुक हो चुका था, लिहाजा हम सभी अपने-अपने कमरे में चले गये। हमारा कमरा जिस ब्लॉक में था, वह ब्लॉक मन्दिर के प्रवेश मार्ग से कुछ दूर था।
कमरे में पहुंचने से पहले हम सभी ने मंदिर की ओर से परोसे जा रहे प्रसादम् ग्रहण कर लिया। कमरे पर थोड़ा बहुत आराम करने के बाद रात साढ़े 12 बजे ही स्नान-ध्यान करना शुरू कर दिये। रात 1.30 से 2 बजे तक हम सभी भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन को कतारबद्ध हो चुके थे। 3 बजकर 5 मिनट पर हम सभी को भगवान वेंकटेश्वर का दर्शन मिला। करीब 12-15 फ़ीट की दूरी से भगवान वेंकटेश के दर्शन होते हैं। बस कुछ ही पल उनके सामने आप रुक सकते हैं। और ये कुछ पल सेकंड भर ही होता है और इस सेकंड भर में ही ऐसा प्रतीत होता है कि मैं, धन्य हो गया। इस दौरान चहुंओर गूजता रहता है वेंकटेश्वरा वेंकटेश्वरा, गोविंदा गोविंदा और श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा गूंजता रहा।
दर्शनोपरांत हम सभी मंदिर से बाहर निकले तो खुले आसमान का जो नजारा दिखा वह अद्भुत रहा। आसमान में बिखरे रंग अलग तरह की संतुष्टि का एहसास करा रहे थे। ठंडी और ताज़ी हवा ख़ुशी से भाव विभोर कर रही थी। सात पहाड़ियों की ऊंचाई पर होने के कारण ऐसा लग रहा था, बादल भी हम सभी के साथ घूम-फिर रहे है। सच कहूं तो किताबों में पढ़ी धार्मिक कहानियों के चित्र साकार हो गए। रोमांच की सिहरन बीच हम सभी सुबह 10 बजे तक पहाड़ियों के आंचल में प्राकृति की आभा का आनंद लेते रहे। इसके बाद हम सभी अपने कमरे पर पहुंचे और बैग लेकर स्टैंड तक पैदल ही गये। वहां छोटी बस बुक कर हम सभी बेल्लूर स्थित गोल्डेन टेम्पल के लिए निकल पड़े, लेकिन तिरूपति पहुंचने के साथ हम सभी ने मां पद्मावती अम्मावरी मंदिर, श्री गोविंदराजा स्वामी मंदिर, श्री कपिलेश्वर स्वामी मंदिर, श्री लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी वारी मंदिर (गुहा) कपिलतीर्थम, स्वयंभू श्री वरसिद्धी विनायक स्वामी देवस्थानम् व श्री मणिकांतेश्वर स्वामी वारी देवस्थानम् इत्यादि में दर्शन किया और अगला पड़ाव था गोल्डेन टेम्पल...।
Sripuram Golden Temple, Tamilnadu
दक्षिण भारत के तमिलनाडु में मौजूद महालक्ष्मी स्वर्ण मंदिर, जिसे श्रीपुरम गोल्डन टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु के वेल्लोर में मौजूद यह मंदिर अद्वितीय सरंचना और बेहतरीन आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी प्रसिद्ध है। श्रीपुरम गोल्डन टेम्पल का इतिहास बेहद दिलचस्प है। यह मंदिर महालक्ष्मी को समर्पित है। मंदिर की वास्तुकला बेहद अद्वितीय है। कहा जाता है कि बाहरी हिस्से को कलर करने के लिए लगभग 1500 किलोग्राम सोने का इस्तेमाल किया गया है। इस मंदिर के दोनों हिस्सों को सोने की पन्नी से कवर किया गया है। जबकि, मंदिर के गर्भ गृह में देवी महालक्ष्मी की 70 किलो सोने से बनीं एक दिव्य मूर्ति स्थापित है। मंदिर और चारों तरफ से बेहतरीन पार्क है।
तिरुपति बालाजी के बारे में कुछ बातें
1- तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान वैंकटेश्वर (बालाजी के मंदिर) की महत्ता कौन नहीं जानता। भगवान व्यंकटेश स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है। हर साल करोड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। साल के बारह महीनों में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता, जब यहाँ वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का ताँता न लगा हो। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान भारत के सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही इसे विश्व के सर्वाधिक धनी धार्मिक स्थानों में से भी एक माना जाता है।
2- प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है। वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई। मान्यता है कि यहां आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
मुख्य मंदिर
श्री वेंकटेश्वर का यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है। इसी कारण यहां पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं। पुराण व अल्वर के लेख जैसे प्राचीन साहित्य स्रोतों के अनुसार कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है। पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है।
पैदल मार्ग
पैदल यात्रियों को पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुँचने की चाह की पूर्ति होती है। साथ ही अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है।
केशदान
यहां श्रद्धालु प्रभु को अपना केश समर्पित करते हैं, जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं।मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' स्थान पर यह सामूहिक रूप से संपन्न किया जाता है।
सर्वदर्शनम
सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम काम्प्लेक्स है। वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहां कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहां पर निःशुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। साथ ही विकलांग लोगों के लिए 'महाद्वारम' नामक मुख्य द्वार से प्रवेश की व्यवस्था है, जहां पर उनके लिए सहायक भी होते हैं।
त्रिरूमाला में ठहरने की व्यवस्था
त्रिरूमाला में कमरा लेने के लिये नजदीक ही काउंटर बनाया गया है, जो पूर्णयता आधुनिक है। यहां मन्दिर की ओर से बनाये गये फ्लैटनुमा कमरे महज 50 रुपये में बुक किये जाते है। चूंकि हमारी संख्या 13 थी, लिहाजा हम लोगों ने तीन ब्लाक में कमरा बुक कराया।
मंदिर जाने से पहले
मंदिर के पास कैमरा, मोबाइल, जूते-चप्पल रखने की मुसीबत से बचने के लिए हम सभी ने हर उस चीज़ को कमरे पर ही रहने दिया, जो मंदिर में ले जाना निषेध था। बस दर्शन पर्ची और पहचान पत्र साथ में रखकर दर्शन के लिए हम सभी निकले।
पर्ची दिखाकर प्राप्त किया लड्डू
मंदिर से निकलकर हम प्रसाद के लाइन में लग गए, जहां अपनी दर्शन पर्ची दिखाकर 13 लोगों के 13 लडडू लिया। सर्वदर्शनम् लाइन से दर्शन करने वाले लोग किसी भी काउंटर से लडडू ले सकते हैं। वैसे एक बात तो है, यहां के लडडू का कोई जवाब नहीं। लडडू लेने के बाद हम मंदिर परिसर और चीज़ो को देखने बाद करीब 10.30 बजे हम सभी ने अन्न प्रसाद ग्रहण किया।
मां पद्मावती अम्मावरी मंदिर
तिरुपति बालाजी धाम में मां पद्मावती अम्मावरी मंदिर सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान वेंकटेश्वर की पत्नी देवी पद्मावती का निवास स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि तिरुपति बालाजी धाम की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती, जब तक श्री पद्मावती अम्मावरी मंदिर में दर्शन नहीं किया जाता है। तिरुपति के पास तिरुचानूर नामक गांव में सभी भक्तजनों पर कृपा बरसाने वाली माता पद्मावती का सुन्दरता से युक्त भव्य मंदिर है।
श्री गोविंदराजा स्वामी मंदिर
तिरुपति के सबसे प्राचीन मंदिरो में शुमार श्री गोविंदराजा स्वामी मंदिर का निर्माण संत रामानुज द्वारा 11वीं शताब्दी में करवाया गया था। द्रविड़ वास्तुशैली में बना सात मंजिला यह मंदिर भक्तो की आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में धन लाभ की इच्छा हेतु लोग मन्नत मांगने की कामना करते हैं। गोविंदराजा स्वामी को भगवान वेंकटेश्वर का बड़ा भ्राता माना जाता है।
श्री कपिलेश्वर स्वामी मंदिर
तिरुमला की पहाड़ियों की तलहटी और कपिला तीर्थाम नामक नदी के तट पर स्थित श्री कपिलेश्वर स्वामी का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। तिरुपति में यह एक मात्र शिव मंदिर है। कहते है इस धार्मिक स्थल पर कपिल मुनि ने भगवान शिव की आराधना की थी, इसी कारण इस मंदिर को कपिलेश्वर स्वामी मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर तिरुपति से 3 किमी की दूरी पर स्थित है।
मान्यताओं अनुसार जीवन में अपने कष्ट दूर करना चाहते हैं तो तिरुपति बालाजी का दर्शन जरूर करें। यह लेख तिरुपति बाला जी व अन्य मंदिरों में दर्शन और वहां की पौराणिकता के आधार पर सहेजने की कोशिश किया हूं, ताकि अन्य दर्शनार्थियों को इससे कुछ सहूलियत मिल सकें। यह हमारी भारत दर्शन टीम का यात्रा वृतांत है। उम्मीद है यात्रा वृतांत पर कामेंट बाक्स में जरूर अपना प्यार और सुझाव देंगे।
भोला प्रसाद, पत्रकार बलिया (उत्तर प्रदेश)
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