बलिया : पूर्वांचल के मालवीय बाबू शिवशंकर सिंह 'वकील साहब' की पुण्यतिथि पर संगोष्ठी




बलिया। कुंवर सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया के संस्थापक प्रबंधक पूर्वांचल के मालवीय बाबू स्व. शिवशंकर सिंह 'वकील साहब' की पुण्यतिथि के अवसर पर 'पूर्वांचल के मालवीय : व्यक्तित्व एवं सामाजिक प्रभाव' विषयक संगोष्ठी सम्पन्न हुई। इसकी अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. अंजनी कुमार सिंह ने की।
इस अवसर पर बाबू कुंवर सिंह एवं बाबू शिवशंकर सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ ही कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इसमें स्वागत एवं बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए राजनीति विज्ञान के अध्यक्ष एवं डीन सामाजिक विज्ञान संकाय डॉ. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि-वे विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे। इसका प्रमाण उनके कार्यों से सहज ही मिल जाता है। ऐसे पुरुष एक तरफ समाज के नियामक होते हैं, तो दूसरी ओर वे परोपकार की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे।
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष एवं डीन कला संकाय, जेएनसीयू डॉ. फूलबदन सिंह ने कहा कि-छोटी-बड़ी घटनाओं के समय ईश्वर की असीम कृपा का अनुभव कर चुके शिवशंकर सिंह मानवतावादी एवं सर्वगुण सम्पन्न थे। इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में प्राचार्य ने उनके व्यक्तित्व एवं सामाजिक-सांस्कृतिक अवदानों पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि-वकील साहब के नाम से प्रसिद्ध एवं आजन्म जनपद की शिक्षा-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित बाबू शिव शंकर सिंह जी की प्रतिभा अनुकरणीय रही है। आज ज़ब हम लोक के आलोक में अध्ययन-अध्यापन का स्मरण करते हैं तो सहज ही उनके कर्म की प्रासंगिकता सिद्ध हो जाती है।
बाबू शिवशंकर सिंह का इस धरा पर अवतरण दिनांक 12 सितम्बर, 1919 को हुआ था। वे असहाय की आशाओं, उद्वेगों, सुखों-दुखों और आँसुओं को सहारा देकर समाज में विशिष्ट थे।प्रत्येक महापुरुष अपने समय का परिणाम होता है। काल के हृदय से जो अनुभूतियाँ एकत्र होती है, उन्हीं को स्वर देने के लिए संत, समाज सुधारक एवं महापुरुष जन्म लेते हैं. अपनी ही साधना और तपस्या के बल पर व्यक्तित्व निर्धारण सम्बन्धी जितने भी उदाहरण प्राप्त होते हैं, उनमें बाबू शिवशंकर सिंह का नाम विशेष महत्व रखता है।
बाबू शिवशंकर सिंह जी बचपन से ही जातिवाद, छुआछूत और धार्मिक उन्माद से प्रभावित हुए बिना लोगों के साथ समरस व्यवहार करते थे। दैवी कृपा से बचपन से ही उनके मन में सभी जीवों के प्रति लगाव, प्रेम, दया एवं ममत्व के भाव थे। आगे चलकर मानवीयता के सभी गुण उनके पथ के साधक सिद्ध हुए। बलिया जनपद के शैक्षणिक साधक का निधन 13 सितंबर 1980 को हुआ। उनके नैतिक आदर्श एवं मानवीय मूल्य आज भी नयी पीढ़ी के लिए आदर्श एवं अनुकरणीय है।कार्यक्रम का सफल संचालन हिन्दी में अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ. मनजीत सिंह ने किया तथा आभार डॉ. अजय बिहारी पाठक ने प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर डॉ. राम कृष्ण उपाध्याय, डॉ. सत्यप्रकाश सिंह, डॉ. फूलबदन सिंह, डॉ. संजय, डॉ. सच्चिदानन्द, डॉ. दिव्या मिश्रा, डॉ. धीरेंद्र सिंह, डॉ. अवनीश जगन्नाथ, डॉ. शैलेश पाण्डेय, डॉ. राजेंद्र पटेल, रामावतार उपाध्याय, डॉ. आनन्द , योगेंद्र, अनिल गुप्ता, सुरेंद्र कुमार, उमेश यादव, मनोज, लाल वीरेंद्र सिंह, राज कुमार सिंह, राज कुमार सिंह, दीपक सिंह, प्रभु नारायण, विकास कुमार, रजिंदर, दीनानाथ राय सहित प्राध्यापक, कर्मचारी एवं छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे ।

Related Posts
Post Comments

Comments