ओलंपिक खेलों के प्रति आशा और निराशा के बीच जूझता जनमानस : बलिया के स्कूल डायरेक्टर का बेबाक सुझाव
On
अभी कुछ दिनों पहले ही ओलंपिक खेलों का समापन हुआ है। अपने देश के खिलाड़ियों ने भाग लेकर, अपनी क्षमता और प्रदर्शन के अनुसार मेडल भी जीता और विश्व पटल पर देश का मान बढ़ाया। पूरे देश मे न्यूज पेपर, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया, सामाजिक संगठन, खेल संघों और खेल प्रेमियों द्वारा अपने देश के प्रदर्शन की समीक्षा की जा रही हैं। सबके अपने अपने विचार है और अपने तर्कों द्वारा अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश भी की जा रही हैं। खेल की दृष्टि से सबसे बड़ा बदलाव मुझे यह लगा कि पहली बार हमारे देश के प्रधान मंत्री का खिलाड़ियों के बहुत नजदीक जाना और समय-समय पर उनको प्रोत्साहित करना, जिसकी उन्हें वास्तव में जरूरत थी। प्रोत्साहन में वाकई बहुत बड़ी ताकत होती है। तालियों की गड़गड़ाहट इंसान से क्या से क्या करा देती है। किसी अपने का पीठ पर या सिर पर हाथ असीम ऊर्जा भर देता है।
वहीं पर अपने देश की आबादी से मेडल की तुलना, कई छोटे छोटे देशों से अपनी तुलना, विभिन्न खेल संघों की भूमिका और खेलों के बृहद विकास मे सरकार की भूमिका, सबकी अपनी अपनी सोच है। और मजे की बात तो यह है कि वो भी सोच रहे हैं जो कभी अपने बच्चों को खेलने का अवसर तक नहीं दिए या दूसरे बच्चों को खेलते हुए देख कर बहुत कंजूसी के साथ ताली बजाते हैं। भारत के एक छोटे से जिले का नागरिक होने के नाते मैं अपने जिले के स्कूल/कॉलेज के आदरणीय प्राचार्य/प्रबंधक, खेल संघों के सम्मानित पदाधिकारियों और खेल प्रेमियों से अनुरोध करना चाहूंगा कि अपने जिले बलिया में भी खेल की असीमित सम्भावनायें है।
बस जरूरत है माहौल बनाने की, अपने बच्चों/छात्रों का खेल के प्रति रुचि विकसित करने की। अगर मणिपुर, असम, त्रिपुरा, हरियाणा के किसी छोटे गांव/जिले का खिलाड़ी ऊचाईयों पर पहुंच सकता है तो बलिया का लाल क्यों नहीं। मेरे विचार से केवल हमें जरूरत है हमारी सोच बदलने की और थोड़े से त्याग की। सोच से मेरा मतलब है कि स्कूल/कॉलेज के प्राचार्य/प्रबंधक जितना महत्व अपने विद्यालय में मुख्य विषय जैसे गणित और विज्ञान की शिक्षा को देते हैं, उतना ही महत्व खेल को भी देना शुरू करे। अभी तक होता यही है कि अगर किसी भी विषय की पढ़ाई पीछे है तो खेल के period को रोक दिया जाता है।
सारी ताक़त उस विषय विशेष पर केंद्रित कर दिया जाता है। और दूसरी बात यह है कि अपनी मिट्टी में बहुत ताकत और असीम सम्भावनायें भी है। अपने यहां तो कल्पना से भी परे ऊर्जावान खिलाड़ी हैं। बस जरूरत है उनको संसाधन और प्रोत्साहन देने की। उनको उनका लक्ष्य बताने की। आप भी सुबह सुबह सड़कों पर नौजवानों को दौड़ लगाते हुए देखते होंगे, अभी तक उनका लक्ष्य सेना या पुलिस में नौकरी पाना है। और यह जरूरी भी है अपने तथा अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी जुटाने के लिए, लेकिन अगर हम सब उनका साथ दे तो ये अपने परिवार की परवरिश के साथ-साथ जिले का नाम भी रोशन कर सकते हैं। उनमें वो ज़ज्बा, वो जोश भरना होगा, उनकी आँखों में सपना वो जगाना होगा और उनके साथ खड़ा भी होना पड़ेगा। अभी कुछ दिनों पहले आदरणीय मोहन भागवत जी ने कहा था कि सबकुछ सरकार के भरोसे छोड़ देने पर नहीं हो सकता।
अगर हम बस यही रोते रहेंगे कि बलिया में खेल का मैदान नहीं है, और है भी तो वर्षो से बारिश और बाढ़ के पानी में डूबा हुआ है। लेकिन एक दुसरे पर लानत-मलामत भेजने से हमे मिलेगा क्या?!? हमारे बच्चों को क्या मिलेगा।Horlicks और Bouranvita पीने वाले कितनों ने अब तक मेडल जीता है या ओलिंपिक खेलने गए हैं। जो ताकत हमारी ही मिट्टी मे उपजे देसी चना और दूध में है उसका तो कोइ मुकाबला ही नहीं। इस वर्ष के ओलंपिक विजेताओं में बहुत से ऐसे खिलाड़ी है, जिनका मेडल जीतने के पहले तक कोइ नाम या पहचान ही नहीं थी। यहां तक कि उनके जन्म स्थान तक की जानकारी किसी को नहीं थी। बहुत से लोग जिनमे खेल पत्राकार भी सामिल है। आज उनके बारे मे तमाम लेख और कहानियाँ लिखी जा रही हैं।
अपना जिला सभी क्षेत्रों मे हमेशा से ही आगे रहा हैं और है भी। क्या अपने मंगल पांडे जी को आजादी का विगुल फूंकते समय यह याद आया कि मेरे पास उन्नत किस्म के हथियार नहीं है?! क्या अमर शहीद चित्तू पांडे, कौशल किशोर, रामदहीन ओझा आदि सेनानियों को अंग्रेजी हुकूमत के हथियारों का डर सताया था?! क्या आदरणीय चन्द्रशेखर जी को देश के बड़े-बड़े धनाढ्य नेताओ का भय था। आज नीति आयोग से लेकर देश और विदेश के बड़े-बड़े संस्थानों, रेलवे, चिकित्सा संस्थाओं, शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों के कुलपति, वैज्ञानिक आदि पद पर अपने जिले के लाडले उच्च पदों पर आसीन होकर जिले को गौरव प्रदान कर रहे हैं। अगर बलिया में भी समाज के सभी क्षेत्रों के लोग हाथ बढ़ाए, हाथ मिलाए, सोच पैदा करे, त्याग की भावना लाए , खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना शुरू करे तो निश्चित रूप से खेल के क्षेत्र मे भी अपना जिला आगे बढ़ सकता है।
एक छोटी सी आशा और अपार विश्वास के साथ, आपका...
डॉ. कुंवर अरूण कुमार सिंह
निदेशक
सनबीम स्कूल अगरसंडा, बलिया
Tags: Ballia News
Related Posts
Post Comments
Latest News
योगी सरकार की बड़ी कार्रवाई : एसडीएम सस्पेंड, 11 दिन पहले गिरफ्तार हुआ था पेशकार
14 Dec 2024 06:32:49
सुलतानपुर : उप जिलाधिकारी जयसिंहपुर संतोष कुमार ओझा को शासन ने निलंबित कर दिया है। दो दिसंबर को उनके न्यायालय...
Comments