मानसिक, बौद्धिक व शारीरिक समंजन के प्रतीक थे प्रो. जमुना राय : डॉ. जनार्दन




बलिया। प्रो. जमुना राय स्मृति समिति के तत्वावधान में काशीपुर नई बस्ती स्थित कवि कुटी के प्रांगण में उनकी पुण्यतिथि पर 'प्रोफेसर जमुना राय व नई शिक्षा नीति' विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उनके तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए वक्ताओं ने न सिर्फ उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला, बल्कि उन्हें बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी बताया।
वरिष्ठ साहित्यकार डाक्टर जनार्दन राय (dr janardan Rai) ने कहा कि शिक्षा को समर्पित जमुना राय का जीवन विसंगतियों से भरा था, पर कण्टकाकीर्ण विथियों में राह निकाल लेना उनके जीवन का स्पष्ट दर्शन था।साहित्य व गणित दोनों में समान गति के असाधारण विद्यार्थी के रूप में शिक्षा प्राप्त कर एक प्रोफेसर के तौर पर जीवन शुरू करने वाले जमुना राय सतीश चंद्र कालेज के प्राध्यापकों व छात्रों में पठन-पाठन तथा शारीरिक सौष्ठव की दृष्टि से संपूज्य बने रहे। मानसिक, बौद्धिक व शारीरिक समंजन के प्रतीक प्रो.राय संस्कृत, अंग्रेजी व हिन्दी के भी अनन्य अभिज्ञाता थे।
नई शिक्षा नीति की चर्चा करते हुए डॉ. राय ने कहा कि 'नई' तो मात्र विशेषण है, वाकई शिक्षा अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में वर्तमान शिक्षा अभी भी लार्ड मैकाले की गर्हित मानसिकता से मुक्त नहीं हो पायी है। आवश्यकता है कि राष्ट्रीयता और राष्द्र भाषा के आलोक में शिक्षा व्यवस्था पर पुनर्विचार करते हुए राष्ट्रेवयम् जागृयाम के प्रति समर्पित हो।
अक्षयवर नाथ ओझा ने कहा कि शिक्षा क्षेत्र में शैक्षिक मूल्यों के क्षरण से अति मर्माहत हो उठने वाले प्रो.राय सदैव ही उलझी गुत्थियों की चर्चा में अभिनव दृष्टि रखते थे। शिक्षार्थी हित उनकी प्राथमिकता थी। वह भूगोल व शिक्षा परास्नातक तथा सुधि विद्वान थे। गोष्ठी में परमात्मा नंद तिवारी, हरिकिशोर सिंह व शिवबच्चन सिंह ने भी विचार रखा। बाबू शुक्ला, पियूष पांडेय, हर्षित त्रिपाठी, अंकित तिवारी, कुशविन्द ठाकुर शिवजी इत्यादि मौजूद रहे।

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