बलिया में जीयर स्वामी का चातुर्मास : मानव जीवन में नहीं होता मनोरथ का अंत

बलिया में जीयर स्वामी का चातुर्मास : मानव जीवन में नहीं होता मनोरथ का अंत

मन, वाणी और शरीर से नहीं करें किसी का अहित चंचलता व भटकाव रोकने का प्राणायाम श्रेष्ठ उपाय विषय में उलझकर नहीं करें शरीर त्याग

बलिया। मानव जीवन में मनोरथ का अंत नहीं होता, बल्कि एक पूरा हुआ नहीं कि दूसरा मनोरथ खड़ा हो जाता है। बालपन से वृद्धावस्था तक उम्र के हर पड़ाव पर स्नेह और कामनाएं बदलती रहती हैं, लेकिन सुख मृग-तृष्णा बना रहता है। मनुष्य का स्नेह एवं सुख की कामना बाल्यकाल से ही परिवर्तित होती रहती है। शिशु काल में बच्चा मां की गोद में रहना सुख मानता है। बड़ा होने पर पिता के गोद में। फिर साथियों के साथ खेलने में सुख पाता है। विवाह होने के बाद पत्नी के सान्निध्य में सुख का अनुभव करता है। इस तरह मां से शुरू स्नेह उत्तरोत्तर पुत्र-पौत्र की ओर बढ़ता जाता है, लेकिन वास्तविक सुख की प्राप्ति नहीं होती। 

उक्त बातें गंगा नदी के पावन तट पर स्थित जनेश्वर मिश्र सेतु एप्रोच मार्ग के किनारे चातुर्मास व्रत कर रहे महान मनीषी संत श्री त्रिदंडी स्वामी जी के शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी ने कहीं। स्वामी जी ने कहा कि सुख केले के थम्भ की भाँति है। थम्भ से परत दर परत छिलका हटाते जायें, लेकिन सार तत्त्व की प्राप्ति नहीं होती। सांसारिक विषय भोग में स्थायी सुख (आनन्द) की प्राप्ति संभव नहीं है, क्योंकि ये त्रिगुणी हैं। गुण (सत्त्व रज और तम) हमेशा परिवर्तनशील हैं। मनुष्य का यह भ्रम है कि वह वस्तुओं का भोग करना है; वास्तविकता तो यह है कि वस्तुएँ ही उसका भोग करती हैं। 

राजा भर्तृहरि कहते हैं, “भोगा न भोक्ता वयमेव भोक्ता" यानी हम वस्तुओं का भोग नहीं करते हैं, वस्तुएँ ही हमें भोग लेती हैं। अतः विषयों के उपभोग के प्रति अतिशय प्रवृत्ति न रखें। श्री स्वामी जी ने कहा कि अपने परिवार के साथ रहें। उनका भरण-पोषण भी करें लेकिन जीवन भर उसमें अटके-भटकें नहीं। जैसे रेलवे स्टेशन पर बैठा यात्री, स्टेशन की सुख-सुविधा का उपयोग करे, लेकिन ट्रेन आने पर उस सुविधा को त्यागकर ट्रेन में बैठ जाएं। इसलिए मानव का धर्म है कि परिवार रूपी प्लेटफार्म का अनासक्त भाव से सदुपयोग करे, ताकि जीवन यात्रा के क्रम में यह बाधक नहीं बने। आसक्ति दुःख का कारण है। 

प्रसंगवश उन्होंने कहा कि मनुष्य को शरीर त्यागने के वक्त जिस विषय-वस्तु में उसकी आसक्ति रहती है, उसी योनि में जन्म लेना पड़ता है। काशी में गंगा की एक ओर एक वेश्या रहती थी। वह अर्थोपार्जन के लिए वेश्यावृत्ति में लगी रहती थी। दूसरी ओर मंदिर में पुजारी पूजा करते थे। आरती और शंख ध्वनि की तरंगों से वेश्या प्रभावित होती, कि काश! ऐसा अवसर हमें प्राप्त होता। उसका मन मंदिर में अटका रहता। दूसरी ओर पुजारी वेश्या के नृत्य एवं ताल-तरंग से प्रभावित होकर अपना ध्यान वेश्यालय में कायें रहते थे। मन के भटकाव से मरणोपरांत वेश्या मोझ को प्राप्त की और पुजारी वेश्या के घर जन्में।

Related Posts

Post Comments

Comments

Latest News

UP में नीले ड्रम से भी खौफनाक वारदात : इंजीनियर बेटे ने मां-बाप के किए 6 टुकड़े, बोरी में भरकर नदी में फेंकी लाश UP में नीले ड्रम से भी खौफनाक वारदात : इंजीनियर बेटे ने मां-बाप के किए 6 टुकड़े, बोरी में भरकर नदी में फेंकी लाश
उत्तर प्रदेश के जौनपुर में दिल दहला देने वाला हत्याकांड सामने आया है। एक बेटे ने अपने मां-बाप बड़ी बेरहमी...
पेंशनरों के लिए खास रहा पेंशनर दिवस, बलिया डीएम की मौजूदगी में सुनीं गई समस्याएं
बलिया में शिक्षक-शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के पैन कार्ड में भिन्नता की पत्रावली गायब, बीएसए ने दर्ज कराया मुकदमा
IPL Auction में UP के लाल का जलवा, प्रशांत वीर को CSK ने 14.20 करोड़ में खरीदा, अमेठी में जश्न का माहौल
RCB Players List:  वेंकटेश अय्यर को 7 करोड़ रुपये में खरीदा, देखें रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु टीम के सभी खिलाड़ियों की सूची
83 लाख प्रतिभागियों में चमकीं बलिया की बेटी खुशबू यादव, राष्ट्रपति के हाथों मिला सम्मान
Ballia Road Accident : तस्वीरों में देखें कार एक्सीडेंट का भयावह सच, दो युवकों की चली गई जान