Happy Father's Day : बलिया के पत्रकार ने कुछ यूं बताई पिता की अहमियत, पढ़ें दिल छू लेने वाली बात
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पिता की छाया
एक बार पशुओं के मेले में एक व्यक्ति घोड़ा बेचने के लिए आया। कुछ देर बाद उसके पास ग्राहक आया, तो उसका सवाल था-किसका पैसा है ? ग्राहक ने सीना चौड़ाकर कहा कि मेरे खुद की कमाई है, तो उसने भाव भी नहीं बताया। सीधे यह कहकर लौटा दिया कि तुम नहीं खरीद सकोगे, जाओ।
कुछ देर बाद दूसरा, तीसरा... फिर चौथा ग्राहक भी घोड़ा देखने आया। हर बार वही सवाल, और जवाब भी एक जैसा. सुबह से दोपहर, और फिर शाम भी हो गयी। उसने किसी को घोड़े का दाम भी नहीं बताया। कई लोग टोकते- तुमको घोड़ा बेचने से मतलब है। पैसा कहां से आया, यह जानकर क्या करोगे ? उसने कोई जवाब नहीं दिया। आखिरकार शाम हो गयी। तभी मेले में एक युवक पहुंचा। घोड़े को निहारने के बाद उसने दाम पूछा, उससे भी वही सवाल था, जो सुबह से लगातार बज रहा था। युवक ने कहा- तुम दाम बताओ, मुझे घोड़ा लेना है। किसी तरह से पिताजी को मना कर पैसे लाया हूं। घोड़ा वाला खुश हो गया। उसने घोड़े की कीमत बतायी और युवक तुरंत पैसा देकर घोड़ा लेता गया। अन्य पशु बेचने आये लोग हैरान थे। एक व्यक्ति ने पूछ ही लिया। सुबह से तुमने किसी को भाव भी नहीं बताया, और युवक के साथ मोलभाव किये बगैर ही सौदा हो गया। घोड़ा वाला मुस्कुराया।
बोला- अपनी कमाई पर शौक पूरी नहीं होती। अपना पैसा लेकर जो लोग घोड़ा खरीदने आये थे, वे केवल मोलभाव करते। थककर मुझे नुकसान में भी घोड़ा बेचना पड़ता। मुझे पता है, शौक मां-बाप की कमाई पर पूरा होता है। इसीलिए ऐसे ग्राहक का इंतजार कर रहा था। मैंने 50 हजार के घोड़े की कीमत 70 हजार बतायी और उसने बिना मोलभाव किये खरीद लिया। सही बात है... शौक तो पिता के पैसे से ही पूरे होते हैं। अपनी कमाई तो जरूरतें पूरी करने में ही खप जाती है।
धनंजय पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, बलिया
Tags: Ballia News
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